Saturday, October 1, 2022

प्राचीन कला केंद्र में हुआ नयी परंपरा का आगाज़

केंद्र में महसुस हो रहा था अंतर्राष्ट्रीय स्तर का आयोजन 

चंडीगढ़: 1 अक्टूबर 2022: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन):: 
वो लोग जिन्होंने या तो हमेशां अपनी मातृभाषा बोली या फिर केवल अंग्रेज़ी। भारत की कोई भाषा उन्हें नहीं आती। न वे लोग समझ सकते हैं और न ही बोल सकते हैं। भाषा की इस कठिनाई के बावजूद चंडीगढ़ के प्राचीन कलाकेंद्र में ये विदेश कलाकार और भारत के कलाकार इस तरह एक दुसरे में घुलमिल गए थे जैसे जन्मों जन्मों से एक दुसरे को जानते हों। कला को और शिद्दत से सीखने की प्यास और कला के साथ अंतरंगता ने यह चमत्कार भी कर दिखाया था। माहौल अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक माहौल बना हुआ था। कोई धर्म नहीं, कोई सीमा नहीं, कोई जातिपाति नहीं, कोई धर्म नहीं....! केवल एक ही मज़हब था-कला का मज़हब। प्राचीन कला केंद्र का यह आज का रंग भी देखने वाला था। एक कलामय माहौल। गीत, संगीत और डांस के अनुभवों की ऊंचाई।  दूर दराज से आए कलाकारों से मिल कर और उनकी परफॉर्मेंस को देख कर यूं लगता था जैसे हम किसी अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में मौजूद हों। 

प्राचीन कला केंद्र ने आज यहां अपने एम.एल. कौसर  इंडोर ऑडिटोरियम दोपहर 12:00 बजे  एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया।  केंद्र ने अपनी नयी उपलब्धि का विस्तृत परिचय देने हेतु  प्रेस से मुलाकात की।  इस नए कार्यक्रम के तहत केंद्र के मोहाली परिसर में "गुरु शिष्य परम्परा" के सानिध्य में विभिन्न शास्त्रीय शैलियों के श्रद्धेय गुरुओं के सक्षम मार्गदर्शन में "विधिवत तालीम"   देने के लिए तीन वर्षीय कोर्स की शुरुआत की गई है।   यहां उल्लेख करना प्रासंगिक है कि केंद्र में शास्त्रीय कला के क्षेत्र में तालीम प्राप्त करने वाले विदेशी और भारतीय छात्रों के लिए मेस सुविधाओं के साथ एक सुसज्जित छात्रावास है। विभिन्न देशों से ICCRऔर PKK छात्रवृत्ति के माध्यम से कुछ छात्र पहली अक्टूबर, 2022 से इस गहन शिक्षण कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं। इसी कार्यक्रम के परिचय के दौरान  इन विदेशी छात्रों द्वारा अपने अपने देश की कला का बखूबी प्रदर्शन किया गया।  अपने देश की पारम्परिक वेश भूषा में सजे इन छात्रों ने अपनी देश की कला और संगीत की सुन्दर झलकियां पेश की।  कज़ाकिस्तान और बांग्लादेश से आये इन छात्रों ने अपने देश की कला और संस्कृति का परिचय दिया  

गुरु शिष्य परंपरा का महत्व
अखण्डमंडलकरम व्याप्तम येना चरचाराम |
तत्पदं दर्शीतं ये तस्माई श्रीगुरुवे नमः ||
(उस महान गुरु को नमन, जिसने उस अवस्था को साकार करना संभव बनाया जो पूरे ब्रह्मांड में, सभी जीवित और मृत में व्याप्त है।)
इतिहास और संस्कृति से समृद्ध देश, भारत ने आदिकाल से ही यह महसूस किया है कि युवा व्यक्तित्व  के विकास में एक गुरु का क्या महत्व है। भारतीय संस्कृति में गुरु की भूमिका किसी विषय को पढ़ाने वाले से परे होती है। अपने गुरु से सीखे गए पाठ कहीं अधिक जटिल होते हैं, क्योंकि वे दुनिया के लिए छात्र की आंखें खोलते हैं और अपने विचारों को सही दिशा देते हैं जिसमें उन्हें अपनी ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने और  समृद्ध होने और सफल होने के लिए करना चाहिए।

प्राचीन कला केंद्र के तत्वावधान में छात्र विभिन्न गुरुओं- गुरु शोभा कौसर  जी, गुरु सौभाग्य वर्धन, गुरु बृजमोहन गंगानी, डॉ समीरा कौसर , श्री परवेश और योगी आशु प्रताप से सीखेंगे। कार्यक्रम के लिए छात्रों का पहला बैच पहले ही देश के विभिन्न हिस्सों से और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे साथ जुड़ चुका है।  

ये छात्र जल्द ही अपनी कक्षाएं शुरू करेंगे और अपनी कला-रूपों की बारीकियों को सीखने के साथ-साथ अपने गुरुओं के अनुभवों जो अपने क्षेत्र में उस्ताद हैं और युवा कलाकारों के लिए ज्ञान की सोने की खान से सीखेंगे! 60 से अधिक वर्षों से, प्राचीन कला केंद्र ने कला और संस्कृति के बारे में ज्ञान को बढ़ाने और फैलाने का प्रयास किया है और यह कार्यक्रम उस दिशा में अगला कदम होगा!

कुल मिला कर आज का आयोजन एक नई भव्य शुरुआत का शुभारम्भ था--एक  उदघोषणा जैसा-- जैसा था। प्राचीन कला केंद्र के भव्य सभागार के शांत माहौल में संगीत और नृत्य की लहरियां निमंत्रण दे रही थीं कि आओ और  डुबकी लगाओ। कला के इस आसमान में उड़ान भरो। 

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Saturday, September 24, 2022

परंपरा: प्राचीन कला केन्द्र के छात्रों द्वारा खूबसूरत प्रस्तुतियां

24th September 2022 at 5:28 PM
 अपने गुरूओं से प्राप्त संगीत शिक्षा का बखूबी प्रदर्शन किया 

मोहाली
: 24 सितंबर 2022: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन)::

झुलसा वाली गर्मी ने विदा लेनी शुरू कर दी
और तन को शी
त लहर का अहसास कराने वाली सर्दियों ने भी दस्तक दे दी है। मौसम सुहावना सा हो चला है। दिल दिमाग प्रकृति के संगीत से झंकृत होते भी महसूस होने लगते हैं। निरंतर हो रही बरसात इस महत्वपूर्ण तब्दीली की गवाही भी दे रही थी। 
बारिश के कारण रास्ते भी पानी से भरे हुए थे लेकिन  बहुत से लोग इस का आनंद लूट रहे थे। एक आनंद सा छाया हुआ था। बरसात की एक रिमझिम बाहर हो रही थी और संगीत की एक रिमझिम हाल के अंदर सभी के अंतर्मन पर हो रही थी। सब अपने आप में व्यस्त और मगन। ऐसा कोई नहीं था जो मन और अंतरात्मा को मिल रही शीतलता का आनंद न उठा रहा हो। बाहरी मौसम की तब्दीली के साथ साथ अंतर्मन भी एक तब्दीली चाह रहा था और वह तब्दीली दिखने भी लगी लेकिन इसकी गवाही कौन दे? चंडीगढ़ और मोहाली में स्थित प्राचीन कलाकेंद्र के दोनों परिसरों में आज भी चहल पहल थी। गुरुकुल के सम्मान की तरह शिक्षा पाए हुए छात्र छात्राएं अपने रंग में रंगे हुए थे। उनके अंतर्मन में संगीत के आनंद की बरसात हो रही थी जो जन्मों जन्मों के ताप संताप हर लेती है। इस संगीत की सुर के साथ मिल कर बारिश की बूँदें किसी अमृत वर्षा की तरह महसूस हो रहीं थीं। 

गौरतलब है कि प्राचीन कला केन्द्र आज किसी परिचय का मोहताज नहीं, भारत की प्राचीन कलाओं को संजोने और बढ़ावा देने को अद्भुत कार्य प्राचीन कला केन्द्र पिछले 6 दशकों से निरंतर करता आ रहा है। केन्द्र के मोहाली और चंडीगढ़ काम्पलेक्स में छात्र भारतीय संगीत कलाओं की विधिवत शिक्षा प्राप्त करते हैं और केन्द्र युवा छात्रों को मंच प्रदान करके उनकी प्रतिभा को निखारने का कार्य भी सफलतापूर्वक कर रहा है । इसी कड़ी में केन्द्र की सिलसिलेवार ‘‘परंपरा’’ का आयोजन मासिक कार्यक्रम के तहत किया जाता है । आज केन्द्र की परम्परा केन्द्र के मोहाली स्थित डॉ.शोभा कौसर सभागार में इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें छात्रों ने अपने गुरूओं से प्राप्त संगीत शिक्षा का बखूब प्रदर्शन किया । कार्यक्रम का आयोजन सायं 4 बजे से किया गया । इस कार्यक्रम में विधिवत शिक्षा दे रहे गुरू प्रवेश कुमार,दविंदर सिंह और हृदयकांत के निर्देशन में छात्रों ने मंच प्रदर्शन किया । फाईन आर्ट्स के छात्रों की कुछ खूबसूरत पेंटिग्स का भी इस अवसर पर प्रदर्शन किया गया।

कार्यक्रम का आरम्भ सरस्वती वंदना से किया गया
जिसके बोल थे वंदना को स्वर समर्पित । इसके उपरांत राग भोपाली में गिटार वादन पेश किया गया और खूबसूरत गत पेश करके छात्रों ने खूब तालियां बटोरी । इसके पश्चात राग भाग्यश्री में छात्रों द्वारा बड़े ख्याल की रचना ‘‘प्रीत लागी’’ पेश की गई साथ ही छोटे ख्याल में निबद्ध रचना ‘‘कौन करत’’ प्रस्तुत की गई । इसके उपरांत तराना पेश किया गया जिसे दर्शकों ने खूब सराहा । सामूहिक रूप से गायन करते छात्रों में खूबसूरत सामंजस्य नजर आया।

इसके पश्चात एकल गिटार वादन पेश किया गया जिसमें फलेवरस ऑफ फिंगर स्टाईल गिटार पेश की । इसके उपरांत एक भजन ‘‘तू मेरी राक्खो लाज हरि’’ जोकि अहीर भैरवी में निबद्ध था पेश किया गया । इसके पश्चात एक अन्य एकल गिटार वादन जो कि भैरवी में निबद्ध था प्रस्तुत किया गया । कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए एक खूबसूरत कव्वाली जो कि पहाड़ी राग में निबद्ध थी पेश की गई इस कव्वाली के बोल थे ‘‘भर दो झोली’’। कार्यक्रम के अंत में राग भैरवी में एक शब्द ‘‘बहुत जन्म’’ पेश किया गया।

कार्यक्रम के अंत में केन्द्र की  डिप्टी  रजिस्ट्रार डॉ.समीरा   कौसर ने छात्रों एवं गुरूओं को प्रशंसा भरे शब्दों से उत्साहित किया । इस अवसर पर छात्रों को सटीर्फिकेट भी प्रदान किए गए।

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Thursday, August 11, 2022

केंद्र की 275 वी मासिक बैठक में अंजलि के कत्थक नृत्य से सजी शाम

 Thursday 12th Aug 2022 at 5:55 PM

आज भी दर्शक कार्यक्रम के समापन तक मंत्रमुगध हो कर बैठे रहे 


चंडीगढ़
: 12 अगस्त 2022: (गुरजीत बिल्ला//इनपुट-कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन)::

पत्थरों का शहर  कहे जाने वाले चंडीगढ़ को जो लोग और जो संगठन जीवंत और संवेनदशील बनाए रखते हैं उनमें प्राचीन कला केंद्र भी एक है। इस संस्थान की ओर से नियमित तौर पर आयोजन किए जाते हैं जो संगीत को समर्पित होते हैं। इन आयोजनों में शामिल होने का मतलब होता है दुनिया की भागदौड़ और तनाव से अलग हो कर स्वतः ही स्वयं से जुड़ा, प्रकृति से जुड़ना, संगीत से जुड़ना और भगवान से जुड़ना। बिना कोई मेडिसिन और नशा लिए एक खुमारी में डूब जाना। आज भी यहाँ एक विशेष आयोजन थे। 

चंडीगढ़ ही नहीं बल्कि देश की जानी मानी सांगीतिक संस्था प्राचीन कला केन्द्र पिछले 23  वर्षों से लगातार मासिक बैठकों का निरंतर आयोजन करता आ रहा है  जिसमें देशभर से ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे  विभिन्न शास्त्रीय कलाओं में पारंगत कलाकार भाग ले चुके हैं ।  इन बैठकों में वरिष्ठ कलाकारों से लेकर उभरते कलाकारों ने अपनी खूबसूरत प्रस्तुतियों से संगीत प्रेमियों का मनोरंजन किया है   और ये सिलसिला आज भी  जारी है।

आज की बैठक में दिल्ली की युवा एवं प्रतिभावान कत्थक नृत्यांगना अंजलि मुंजाल ने खूबसूरत  कत्थक नृत्य की प्रस्तुति पेश की  । अंजलि अल्पायु से ही कत्थक नृत्य सीख रही है । उन्होंने कत्थक की विधिवत शिक्षा अपने गुरु विधा लाल से प्राप्त की है  । अंजलि के नृत्य में उनका कठिन परिश्रम,रियाज़ और अभिनय अंग पर खास पकड़ उन्हें संगीत जगत में नई पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण पहलू रहा है ।

अंजलि ने  कार्यक्रम की शुरूआत श्री गणेश वंदना  से की जिस में अंजलि ने नृत्य के माध्यम से भगवन गणेश को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये  उपरांत अंजलि  ने  शुद्ध पारम्परिक कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया  जिस में तीन ताल में निबद्ध आमद , परन, तिहाई,तोड़े,टुकड़े,गत निकास,चक्र लड़ी आदि प्रस्तुत किया ।

कार्यक्रम का समापन अंजलि ने एक खूबसूरत रचना "बिजुरी चमके "  से किया जोकि मौसम के अनुसार राग मिया मल्हार में निबद्ध थी । इसके उपरांत  अंजलि ने कुछ पारम्परिक बंदिशें भी पेश की।   अंजलि ने अभिनय अंग,पैरों की चालों एवं नृत्य की खूबसूरत मुद्राओं से कार्यक्रम को चार चांद लगा दिए ।

अंजलि के साथ अमान अली  ने तबले  पर , आमिर अली ने सारंगी पर  और सुहेब हसन ने गायन  पर और सोनम यादव ने पडंत पर बखूबी  संगत की कार्यक्रम के अंत में केंद्र की रजिस्ट्रार डॉ शोभा कौसर एवं सचिव श्री सजल कौसर ने कलाकारों को सम्मानित किया। 

Saturday, June 18, 2022

सुरोताल सुसज्जित संध्या में उभरते कलाकारों ने जमाया रंग

18th June 2022 at 5:28 PM

‘‘सुरोताल सुसज्जित संध्या’’ प्राचीन कला केन्द्र की एक और उपलब्धि 


चंडीगढ़
: 18 जून 2022: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन)::

प्राचीन कला केन्द्र पिछले 70 दशकों से निरंतर संगीत कला की स्वार्थहीन सेवा अपने अनथक प्रयासों से करता आ रहा है । प्राचीन कला केन्द्र न सिर्फ जाने माने कलाकारों की कला को कला प्रेमियों तक पहुंचाता है बल्कि आने वाले कल के युवा एवं उभरते कलाकारों को मंच देने का विलक्षण कार्य भी केन्द्र निरंतर करता आ रहा है । इसी कड़ी में आज एक विशेष सांगीतिक कार्यक्रम ‘‘सुरोताल सुसज्जित संध्या’’ का आयोजन प्राचीन कला केन्द्र द्वारा किया गया जिसमें चंडीगढ़ के कई उभरते कलाकारों द्वारा खूबसूरत प्रस्तुतियां पेश की गई और इन कलाकारों ने न सिर्फ केन्द्र से बल्कि गुरू शिष्य परम्परा के तहत अपने माननीय गुरूओं से भी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं ।

आज के कार्यक्रम का आयोजन केन्द्र के एम.एल.कौसर सभागार में किया गया और इस कार्यक्रम में नन्हें पदमाकार कश्यप,उज्जवला मुरूगन,रिया चक्रवर्ती,श्रद्धा मुरलीधरन एवं सुहानी शर्मा ने अपनी कला प्रतिभा से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया ।

आज के कलाकारों में सब अपने आप में विलक्षण है । नन्हें पदमाकर कश्यप जो कि मात्र आठवीं के छात्र है और अपने पिता एवं गुरू प्रभाकर कश्यप और चाचा दिवाकर कश्यप से संगीत की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं । संगीत इनके खून में बसा है ।

दूसरी कलाकार उज्जवला मुरुगन एक उच्च स्तरीय आईएएस माता-पिता की संतान है । 11 वीं की  प्रतिभावान छात्रा उज्जवला न सिर्फ संगीत में रूचि रखती है बल्कि खेलकूद और पढ़ाई में भी उनकी गहरी रूचि है । इन्होंने संगीत की शिक्षा अपने पहले गुरू यशपाल शर्मा के अलावा उज्जवला  प्रो.हरविंदर सिंह से संगीत की बारीकियां सीख रही है ।

आज की तीसरी कलाकार सुहानी शर्मा भी आईएएस माता-पिता की संतान है जो दसवीं की छात्रा है और अपने गुरू अमित गंगानी से पिछले पांच वर्षो से तबला की शिक्षा ग्रहण कर रही है । सुहानी ने प्राचीन कला केन्द्र से भी संगीत भूषण डिप्लोमा प्राप्त किया है ।

आज की चौथी कलाकार श्रद्धा मुरलीधरन डाक्टर दंपति की विलक्षण संतान है । 22 वर्षीय युवा श्रद्धा स्वयं एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही है लेकिन संगीत में भी उनकी गहरी रूचि है । इन्होंने अपने गुरू प्रो.सौभाग्य वर्धन जी से संगीत की शिक्षा प्राप्त की है । बाबा हरिवल्लभ सम्मेलन में जूनियर कंपीटिशन में प्रथम स्थान प्राप्त कर चुकी श्रद्धा अब तक बहुत से कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुतियांे से संगीत प्रेमियों को अवगत करवा चुकी है ।

आज के कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति उपरोक्त सभी कलाकारों से थोड़ी अलग है क्यों कि हमारी पांचवी कलाकार रिया अग्रवाल विशेष रूप से सक्षम हैं क्योंकि न तो रिया ठीक से बोल पाती है न सुन पाती है, लेकिन इस कठिन परिस्थिति में भी हौसलों से भरी रिया को जब गुरू डॉ.शोभा कौसर के शिष्यत्व की छांव मिली तो उसकी तपती जिंदगी को एक नया आयाम मिला । रिया गुरू डॉ.शोभा कौसर के शिष्यत्व में कथक सीख रही है और बखूबी अपनी कला को निखार रही है ।

आज के कार्यक्रम की शुरूआत पदमाकर कश्यप के गायन से हुई । राग मालकौंस में पदमाकार ने झपताल में निबद्ध रचना ‘‘प्रथम कर ओम’’ पेश की और इसके बाद छोटे ख्याल की रचना ‘‘सियापति राम कृष्णा राधा’’ । इसके पश्चात द्रुत लय में निबद्ध ‘‘आवें नहीं देत मोहे कन्हाई’’ पेश की । कार्यक्रम के अंत में एक भजन ‘‘ऐसे ही गुुरू भावे’’ पेश करके खूब सराहना प्राप्त की।

इसके पश्चात उज्जवला मुरूगन ने मंच संभाला और राग बागेश्री में आलाप के बाद विलम्बित ख्याल की रचना ‘‘कौन गत भई’’ पेश की । उपरांत द्रुत रचना ‘‘कौन करत तोरी विनती पिहरवा’’ पेश करके खूब तालियां बटोरी । उज्जवला ने कार्यक्रम के अंत में तराना पेश किया ।

इसके पश्चात सुहानी शर्मा ने तबला वादन प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने तीन ताल में तबले की प्रस्तुति पेश की । पेशकार,कायदे,रेले,गतें इत्यादि पेश करके खूब प्रशंसा हासिल की ।

कार्यक्रम की अगली पेशकश में श्रद्धा मुरलीधरन ने राग बिहाग से सजी बड़े ख्याल की बंदिश ‘‘का से कहंू मन की व्यथा’’ जो कि चतुश ताल में निबद्ध थी पेश की इसके उपरांत छोटे ख्याल की रचना ‘‘गुण गाऊँगी वीरन पथिकवा’’ प्रस्तुत की । कार्यक्रम के अंत में उन्होंने एक भजन ‘‘मन लगो मेरा यार फकीरी में’’ प्रस्तुत की जिसे दर्शकों ने खूब सराहा ।

कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति में रिया अग्रवाल की कथक प्रस्तुति पेश की गई । इसमेें सबसे पहले रिया ने आलाप से शुरूआत करके गुरू वंदना पेश की । उपरांत धमार ताल 14 मात्रा में निबद्ध पर कथक नृत्य पेश किया । कार्यक्रम के अंत में तीन ताल से सजी कथक के कुछ पारम्परिक अंग जैसे कवित्त,तोड़े,टुकड़े,चालें इत्यादि बेहद खूबसूरती से पेश की । रिया ने अपने खूबसूरत नृत्य से इस बात की पुष्टि की कि इंसान चाहे तो दुनिया के हर असंभव काम को संभव किया जा सकता है बेशर्त हमारे पास इच्छा शक्ति हो । 

कार्यक्रम के अंत में केन्द्र की रजिस्ट्रार डॉ.शोभा कौसर,सचिव श्री सजल कौसर ने कलाकारों को मोमेंटो और सर्टिफिकेट  देकर सम्मानित किया गया ।


Thursday, June 16, 2022

डाॅ.रागेश्री दास द्वारा खूबसूरत गज़लों की शाम ने मोहा दर्शकों का मन

16th June 2022 at 5:59 PM

प्राचीन कला केन्द्र द्वारा विशेष कार्यक्रम का आयोजन

   श्रीमती गंधर्व वर्मा की पहली पुण्यतिथि पर इस अंदाज़ मेंर ही संगीतमय शाम     


चंडीगढ़
: 16 जून 2022: (संगीत स्क्रीन ब्यूरो)::
श्रीमती गंधर्व वर्मा की पहली पुण्यतिथि पर इस विशेष कार्यक्रम का आयोजन प्राचीन कला केन्द्र द्वारा यहां केन्द्र के एम.एल.कौसर सभागार में खूबसूरत गजलों से सजी शाम का आयोजन किया गया । जिसमें कोलकाता की प्रसिद्ध गायिका रागेश्री दास द्वारा गजल,ठुमरी,दादरा इत्यादि की खूबसूरत एवं मनमोहक प्रस्तुति पेश की गई । इस कार्यक्रम का आयोजन केन्द्र की कार्यकारिणी समिति की पूर्व मेंबर एवं एक विलक्षण कलाकार स्वर्गीय श्रीमती गंधर्व वर्मा की प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर किया गया ।

आज के कार्यक्रम की कलाकार डाॅ.रागेश्री दास युवा पीढ़ी की बेहद प्रतिभावान एवं आकर्षक कलाकार है । इन्होंने अपने पिता पुरनेनंदू दास के अलावा गुरू पंडित मोहन लाल मिश्रा एवं विदुषी रीता गांगुली से शिक्षा प्राप्त की । इन्होंने देशभर मे अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों के दिल में खास जगह बनाई ।

आज के कार्यक्रम की शुरूआत इन्होंने खूबसूरत गज़ल  फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया से की। इसके उपरांत इन्होंने एक और खूबसूरत गीत अपने चेहरे से जो जाहिर है और दिल-ए-नादां  तुझे हुआ क्या है पेश करके खूब तालियां बटोरी। 

इसके पश्चात कुछ और खूबसूरत गज़ल फासले ऐसे भी होंगे ,रस्में उल्फत सिखा गया,  कोई वो दिल नवाज है जैसी ग़ज़लें पेश करके दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद इन्होंने एक मधुर दादरा साजन मेरा छोड़ गया पेश किया और अंत में राग भैरवी पर आधारित रचना मृगनयनी तोरी आंख पेश की ।

कार्यक्रम में इनके साथ तबले पर शहर के प्रसिद्ध तबला वादक आविर्भाव वर्मा,हारमोनियम पर तरूण जोशी एवं सारंगी पर कोलकाता के अल्ला रक्खां कलावंत ने बखूबी साथ दिया। केन्द्र के सचिव श्री सजल कौसर ने बखूबी मंच संचालन किया और डाॅ.शोभा कौसर ने कलाकारों को सम्मानित किया ।


Saturday, April 30, 2022

रमनीक सिंह की रमणीय प्रस्तुति से दर्शक मंत्रमुग्ध

30th April 2022 at 06:43 PM

 तीन ताल से सजी द्रुत ख्याल की बंदिश बहुत ही यादगारी रही 

चंडीगढ़: 29 अप्रैल 2022: (गुरजीत बिल्ला//संगीत स्क्रीन//पंजाब स्क्रीन)::

प्राचीन कला केन्द्र द्वारा एक विशेष सांगीतिक संध्या का आयोजन केन्द्र के एम.एल.कौसर सभागार में सायं 6:30 बजे से किया गया। इस कार्यक्रम में कनाडा निवासी रमनीक सिंह ने अपने शास्त्रीय गायन की मधुर प्रस्तुति से दर्शकों का मन मोह लिया । इस प्रस्तुति के दौरान कोविड नियमों जैसे मास्क एवं सामाजिक दूरी का पालन किया गया । इस अवसर पर केन्द्र के सचिव श्री सजल कौसर एवं केन्द्र की रजिस्ट्रार डॉ. शोभा कौसर भी उपस्थित थे।  

कनाडा में जन्मी रमनीक सिंह इंदौर घराने की युवा शास्त्रीय गायिका है। इन्होंने इंदौर घराने के महान उस्ताद अमीर खां साहिब से संगीत की शिक्षा प्राप्त की । इन्होंने ठुमरी, ख्याल, तराना, शब्द इत्यादि में महारत हासिल की । देश-विदेश के विभिन्न स्थानों पर अपनी प्रस्तुतियों से प्रसिद्धि हासिल की ।

आज के कार्यक्रम की शुरुआत राग मुल्तानी से की । पारम्परिक आलाप के पश्चात विलम्बित ख्याल में निबद्ध एक ताल की रचना गोकुल गांव के छोरा रे प्रस्तुत की । इसके पश्चात तीन ताल से सजी द्रुत ख्याल की बंदिश सुंदर सुरजनवा
सईंया रे प्रस्तुत करके दर्शकों की तालियां बटोरी । इसक उपरांत स्वरचित तराना पेश करके रमनीक ने दर्शको को मंत्रमुग्ध कर दिया । इसके पश्चात राग धानी में आड़ा तीन ताल से सजी रचना चतुर बलमा सईंया मोरा पेश की । उपरांत राग देश से सजी शब्द जिसके सिर उपर तू स्वामी पेश किया और साथ ही राग खमाज में एक सुंदर ठुमरी कौन गली गयो श्याम पेश की। 

कार्यक्रम के अंत में रमनीक ने राग भैरवी से सजी पंजाबी लोक गीत हीर से समां बांध दिया। रमनीक ने संगीत के हर रंग पेश करके दर्शकों की प्रशंसा अर्जित की । इनके साथ मंच पर तबले पर महमूद खां एवं हारमोनियम पर राकेश कुमार ने संगत की ।

कार्यक्रम के अंत में श्री सजल कौसर एवं    डॉ. शोभा कौसर ने कलाकारों को पुष्प देकर सम्मानित किया।

Thursday, March 24, 2022

51वें भास्कर राव सम्मेलन के चौथे दिन भी जारी रहे

24th March 2022 at 5:39 PM

 शौनक अभिषेकी के शास्त्रीय गायन ने जगाया संगीत का जादू 

 वैजयंती काशी के कुचिपुड़ी नृत्य ने तो सभी को मोह लिया 


चंडीगढ़: 24 मार्च 2022: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन)::

चंडीगढ़ को पत्थरों का शहर बोला जाता है। यहां दया भावना और संवेदना की उम्मीदें कम होती जा रही हैं लेकिन संगीत का जादू जगाने वाले प्रचीन कला केंद्र के आयोजन पत्थरों के इस शहर में भी जीवन की धड़कनें पैदा करते हैं। यहाँ वह गीत सत्य महसूस होने लगता है जिसके बोल हैं गीत गाया पत्थरों ने। प्राचीन कला केंद्र थोड़े थोड़े अंतराल के बाद कुछ न कुछ करता रहता है। 

टैगोर थिएटर में संगीत उत्सव का आयोजन जारी है। इस सात दिवसीय  51वें अखिल भारतीय भास्कर राव सम्मेलन के चौथे दिन गायन और कुचिपुड़ी नृत्य  की प्रस्तुतियों ने चंडीगढ़ कला प्रेमियों का खूब मनोरंजन किया। आज के कार्यक्रम में केन्द्र की रजिस्ट्रार  डॉ.शोभा कौसर एवं सचिव श्री सजल कौसर की साथ तबला गुरु श्री सुशील जैन भी मौजूद थे। उनकी मौजूदगी से उतपन्न अदृश्य लहरें 

आज की दो प्रस्तुतियों में पहले मशहूर शास्त्रीय गायक श्री शौनक अभिषेकी ने  अपने मधुर शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति दी। आज की  युवा पीढ़ी के संगीतकारों में एक प्रमुख नाम, पं. शौनक अभिषेकी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक असाधारण गायक के रूप में प्रमुखता हासिल करते हुए, अपने लिए एक जगह बनाई है उस्ताद जितेंद्र अभिषेकी के शिष्य , शौनक की ख्याल  प्रस्तुति हिंदुस्तानी  संगीत की आगरा और जयपुर शैलियों का एक खूबसूरत मिश्रण है, उन्हें जयपुर घराने के श्रीमती कमल तांबे  द्वारा प्रशिक्षित होने का सौभाग्य मिला। , बाद में अपने पिता से प्राप्त कठोर प्रशिक्षण और साधना से इन्होने बहुत से प्रसिद्द कार्यक्रमों में  अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया 

दूसरी ओर आज की दूसरी प्रस्तुति में  बैंगलोर की वैजयंती काशी ने अपने समूह की साथ कुचिपुड़ी नृत्य की खूबसूरत प्रस्तुति पेश की. वैजयंती काशी भारत की प्रसिद्द कुचिपुड़ी नर्तकियों  में से एक है। उनका करियर प्रदर्शन, कोरियोग्राफी, शिक्षण, अभिनय, अनुसंधान उनके व्यक्तित्व का  एक प्रभावशाली पहलु है . वैजयंती की कृतियों को लगभग 30 देशों में दुनिया भर के कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में प्रदर्शित किया गया है। 

आज के कार्यक्रम की शुरुआत  शौनक की गायन से हुई. उन्होंने विलक्षण राग सरस्वती को चुना . और पारम्परिक आलाप की पश्चात रूपक ताल से सजी बंदिश "रैन की बात " पेश की . उपरांत तीन ताल में निबद्ध बंदिश " साजन बिन कैसे " प्रस्तुत करके दर्शकों की वाहवाही प्राप्त की . कार्यक्रम का समापन  उन्होंने राग भैरवी से सजे एक भजन से किया जिसके बोल थे " शिव की मन शरण " . इनके साथ तबले पर उस्ताद अकरम खान एवं हारमोनियम पर राजेंद्र बनर्जी ने बखूबी संगत की . 

कार्यक्रम के दूसरे भाग में वैजयंती काशी ने अपने समूह  की साथ कुचिपुड़ी नृत्य का खूबसूरत प्रदर्शन किया . इन्होने कार्यक्रम की शुरुआत एक भक्तिमयी प्रस्तुति अभंग से की जिस में इन्होने  भगवन विष्णु की आराधना को नृत्य की माध्यम से दर्शाया . इसके उपरांत  दक्षिण की प्रसिद्द स्थल तिरुमाला जोकि भगवन विष्णु की स्थली मानी जाती है,  की अद्भुत सुंदरता एवं महातम का वर्णन नृत्य की माध्यम से किया , जिसे दर्शकों ने बहुत सराहा . इसके बाद  कृष्ण लीला  पर आधारित रचना पेश की और इस भाग में नृत्य  का प्रदर्शन . ब्रास की प्लेट पर किया जाता हैं . कार्यक्रम की अंत में  राग मोहना पर आधारित  पूतना मोक्ष  नृत्य नाटिका का सूंदर प्रदर्शन किया गया . जिस में बाल कृष्ण को मारने की इरादे से आयी पूतना राक्षसी  जब सूंदर औरत की रूप में आयी तो कैसे भगवन कृष्ण ने उसका वध किया . इसी  घटना का सूंदर चित्रण इस नृत्य नाटिका में किया गया है 

कार्यक्रम के समापन पर केन्द्र की रजिस्ट्रार  डॉ.शोभा कौसर,एवं सचिव श्री सजल कौसर ने कलाकारों को पुष्प एवं समृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।

मंच संचालक डॉ  समीरा कौसर ने बताया कि कल यानि 25मार्च को पंडित संजीव अभ्यंकर अपने  शास्त्रीय गायन और पंडित प्रवीण गोडखिंडी अपने बांसुरी वादन से संगीत प्रेमियों का मनोरंजन करेंगे। 

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Wednesday, January 19, 2022

इस बार राग पहाड़ी पर आधारित फ़िल्मी गीत की चर्चा कर रही हैं अनीता शर्मा

17th January 2022 at 10:03 AM 

फिल्म "इक महल हो सपनों का" में शामिल था यह लोकप्रिय गीत

राग आधारित फ़िल्मी गीतों की चर्चा का मकसद है आम लोगों तक राग की अहमियत को सादगी से ले जाना। संगीत के इस मर्म को उन लोगों तक भी ले जाना है जिन्होंने कभी राग की तरफ ध्यान ही नहीं दिया लेकिन फिल्म के गीत उन्हें बहुत पसंद होते हैं। इस बार अनीता शर्मा की कलम से  हम प्रस्तुत कर रहे हैं राग पहाड़ी पर आधारित फ़िल्मी गीत "दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ दिया।" बहुत से लोकप्रिय गीतों की तरह यह गीत भी राग पहाड़ी पर आधारित है।अनीता शर्मा ने किया है शानदार एनालसिस जिससे कई पहलू देखने को मिलेंगे। --कार्तिका सिंह 


लुधियाना
: 19 जनवरी 2022 (अनीता शर्मा//संगीत स्क्रीन)::

सन 1975 में आई थी फिल्म "इक महल हो सपनों का।" इस फिल्म के गीत बहुत ही लोकप्रिय हुए थे। इन्हीं में से एक गीत था: 

दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ दिया; 

दुनिया की आंधियों से भला वह बुझेगा क्या! 

साहिर लुधियानवी साहिब का लिखा यह पूरा गीत भी इस रचना के अंत में दिया जा रहा है। यह गीत राग पहाड़ी पर आधारित है और ताल है कहरवा (धिंड तक तक/धिंड ता ता) Congo Bongo तालवाहा 

संगीतकार रवि की उत्कृठ कृतियों में इस गीत को विशेष स्थान प्राप्त है। स्वयं संगीतकार रवि ने विविध भारती से प्रसारित एक साक्ष्ताकार में इस गीत की रेकार्डिंग से पहले का एक रोचक किस्सा सुनाया और बताया कि जिस दिन मुम्बई में इस गीत की रेकार्डिंग होनी थी उस दिन बंबई में संगीतकारों की हड़ताल थी लेकिन इस गीत के फिल्मांकन की शूटिंग शेडयूल तय होने के कारण संगीतकार रवि ने अकेले रिदिम बॉक्स और हारमोनियम ले कर स्टूडियो में अपनी आवाज़ में गीत की रेकार्डिंग कर के फिल्म के डॉयरेक्टर को दे दी। इस तरह उस नाज़ुक हालात में भी फिल्मांकन पूरा हो गया। बाद में जब संगीतकारों की हड़ताल खत्म हुई तो लता मंगेशकर जी से डेट ले कर पुनः इस गीत की रेकर्डिंग की गई। राग पहाड़ी के बहुत ही खूबसूरत प्रयोग हैं इस गीत में। 

राग पहाड़ी में निबद्ध इस गीत की स्थायी 1963 में आई फिल्म "भरोसा" के एक गीत पर ही बनाई गई थी। यह गीत बहुत ही लोकप्रिय हुआ था और इसके बोल थे "वो दिल कहां से लाऊं तेरी याद जो भुला दे...!" इक महल हो सपनों का के इस लोकप्रिय गीत "दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ दिया" की स्थाई बनाई गई थी भरोस फिल्म के गीत--तेरी याद जो भुला दे की धुन के आधार पर ही। इस तरह के खूबसूरत प्रयोग बहुत से अन्य लोकप्रिय गीतों में भी हुए हैं जिनकी चर्चा हम लोग भविष्य में भी करते रहेंगे।  जब इस गीत अर्थात दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ धुन की धुन तैयार हो रही थी तो इसके संगीतकार रवि स्वयं पूरी तरह इसी पर केंद्रित थे। कालजयी गीत और कालजयी धुनें इसी तरह की साधना से बनते हैं और युगों युगों तक लोगों के दिल दिमाग पर छाए रहते हैं। इस गीत को तालबद्ध करने के लिए Congo Bongo पर कहरवा ताल के ठेके का भिन्न रूप (धिंड तक तक//धिंड ता ता) बहुत ही अनूठे ढंग से लिया गया। गीत के स्थायी की पहली पंक्ति ओके दोहराने पहले वायलिन पर छोटे से टुकड़े का सुंदर प्रयोग सुनने को मिलता है। 

गीत के अन्तरे से पहले के टुकड़े में तार शहनाई (वाद्य) का बहुत ही सुचारु रूप ढंग से प्रयोग किया गया है। अंतरे की पहली पंक्ति के बाद आने वाले संगीत में वायलिन और वायोला का मिश्रित प्रयोग बहुत ही खूबसूरत लगता है। 

दुसरे अंतरे से पहले आने वाला संगीत पहले वायलिन और मैडोलियन पर और फिर तार सप्तक में वायलिन, गिटार और तार शहनाई पर पर प्रयुक्त किया गया है। अंतरे की अंतिम पंक्ति के बाद, स्थायी से जोड़ते समय बांसुरी के छोटे से टुकड़े (प ध स रे ग) का समधुर प्रयोग किया गया है। गीत के अंत में मैडोलियन और गिटार के टुकड़े (Piece) से इसे समाप्त किया गया है। 

गायिका लता मंगेशकर जी द्वारा गाए इस गीत में कई जगह गले की हरकतों (मुर्कियों) का बहुत ही अच्छा उपयोग देखने को मिलता है। जैसे-दिल में किसी के प्यार का ( S S S स प म य ग रे स नी स्वर समुदाय) स्थान पर मुर्की प्रयोग हुआ है। ऐसा अनूठा प्रयोग करने  इस गीत की सुंदरता में चार चाँद लग गए। प्रेमभाव की अनुभूति और प्रभाव इत्यादि भाव इस गीत के प्राणभूत तत्त्व हैं। संक्षेप में प्रेमभाव का ऐसा सुंदर चित्रण विरले गीतों में ही देखने को मिलता है। 

पहाड़ी राग पर आधारित गीतों की संख्या बहुत है।  एक मोटा   कहा जाता है की  ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के दौर की बात करें तो 50 फीसदी से अधिक फ़िल्मी गीत इसी पर आधारित रहे। 

फिल्म दोस्ती का गीत बहुत ही लोकप्रिय हुआ था---आवाज़ मैं  दूंगा---

फिल्म भाभी का गीत बहुत हिट हुआ था चल  पंछी---

फिल्म पाकीज़ा में दिल को छूने  वाला गीत था--चलो दिलदार चलो--चांद के पार चलो--

फिल्म चौहदवीं का चांद में गीत था--चौहदवीं का चांद हो या आफताब हो--

फिल्म मिलन में एक गीत हिट हुआ था--सावन का महीना पवन करे सोर--

फिल्म दुलारी में एक गीत हिट हुआ था--सुहानी रात चुकी--न जाने तुम  आओगे!

फिल्म ममता का गीत था--रहें न रहें हम--महका करेंगे--!

फिल्म ज़िद्दी का लोकप्रिय गीत था--रात  समां-झूमे चन्द्रमा--

फिल्म बारादरी में गीत आया था--तस्वीर हूं--तस्वीर नहीं बनती--

फिल्म राजरानी में भजन//गीत था--पायो जी मैंने रामरतन धन पायो 

फिल्म ताजमहल का गीत था--जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा-- 

फिल्म जेवल थीफ में गीत बहुत चला था-- रुला के गया सपना--

गैर फ़िल्मी गायन में एक ग़ज़ल गाई थी जनाब गुलाम अली साहिब ने--दिल में इक लहर सी उठी है अभी--!

फिल्म कश्मीर की कली का एक गीत है--इशारों इशारों में दिल लेने वाले--बता यह हुनर तुमने सीखा कहां से!

फिल्म आराधना के गीतों में एक गीत शामिल था--कोरा कागज़ था यह मन मेरा--लिख दिया नाम जिसपे तेरा!

फिल्म कभी कभी में गीत प्रसिद्ध हुआ था--कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है--

फिल्म आप की कसम का गीत था--करवटें बदलते रहे सारी रात हम!  आपकी कसम-!

आप अनुमान लगा सकते हैं की कितनी तरह के भाव--कितनी तरह की धुनें  राग पर आधारित हैं। गौरतलब है कि इस राग की उत्पत्ति बिलावल थाट से मानी गई है। इसमें म और नि स्वर अति अल्प प्रयोग हुए हैं। इसलिये इस राग की जाति में इन स्वरों का समावेश नहीं किया गया है और इसे औडव जाति का राग माना गया है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि किसी भी राग की जाति मुख्यत: तीन तरह की मानी जाती है।

1) औडव - जिस राग मॆं 5 स्वर लगें

2) षाडव- राग में 6 स्वरों का प्रयोग हो

3) संपूर्ण- राग में सभी सात स्वरों का प्रयोग होता हो प्रोफेसर 

इसे आगे और भी विभाजित किया जा सकता है। जैसे- औडव-संपूर्ण अर्थात किसी राग विशेष में अगर आरोह में 5 मगर अवरोह में सातों स्वर लगें तो उसे औडव-संपूर्ण कहा जायेगा। इसी तरह, औडव-षाडव, षाडव-षाडव, षाडव-संपूर्ण, संपूर्ण-षाडव आदि रागों की जातियाँ हो सकती हैं।इस तरह इसे आधार बना कर यादगारी धुन बनाई जा सकती है जो गीत को भी अमर कर देती है। 

इस राग में चंचलता/सुंदरता/प्रेमाभाव सभी को अभिव्यक्त करके विशेषता पूरी तरह से मौजूद है। इसकी चलन चंचल है और यह क्षुद्र प्रकृति का राग है । इसे गाते – बजाते समय राग–सौंदर्य बढ़ाने के लिये अन्य स्वरों का उपयोग विवादी की तरह से करते हैं। इसे भूपाली से बचाने के लिये अवरोह में शुद्ध म प्रयोग करते हैं। गाने–बजाने का समय रात्रि का प्रथम प्रहर है, किन्तु प्रचार में इसे किसी भी समय गा लिया जाता है । मन्द्र धैवत पर न्यास करने से पहाड़ी राग स्पष्ट होता है।  इस राग में दिलचस्पी रखने वाले व्यक्तिगत तौर पर भी अपनी गुजरिश भेज सकते हैं। जिन्हें इस राग में गाने की मुहरत है उनका भी स्वागत है। इस राग में 

वादी स्वर सा और सम्वादी प है। इसे गाने-बजाने का समय–रात्रि का प्रथम प्रहर ही गिना जाता है। 

आरोह- सा रे ग प ध सां।

अवरोह- सां ध प ग रे सा।


आज की चर्चा का विषय रहे गीत के बोल इस प्रकार रहे। पूरा गीत दिया जा रहा है। 

Movie/Album: इक महल हो सपनों का (1975)

Music By: रवि

Lyrics By: साहिर लुधियानवी

Performed By: लता मंगेशकर, किशोर कुमार

दिल में किसी के प्यार का

जलता हुआ दीया

दुनिया की आँधियों से भला

ये बुझेगा क्या

साँसों की आँच पा के भड़कता रहेगा ये

सीने में दिल के साथ धड़कता रहेगा ये

वो नक्श क्या हुआ, जो मिटाये से मिट गया

वो दर्द क्या हुआ, जो दबाये से दब गया

दिल में किसी के...

ये ज़िन्दगी भी क्या है, अमानत उन्हीं की है

ये शायरी भी क्या है, इनायत उन्हीं की है

अब वो करम करे, के सितम उनका फ़ैसला

हमने तो दिल में प्यार का शोला जगा लिया

दिल में किसी के...

आपको यह प्रस्तुति//यह अंदाज़/यह जानकारी सब कैसा लगा अवश्य बताएं। इस रचना पर अर्थपूर्ण और अच्छे कुमेंटस करने वालों को हम अपने आयोजनों में आने का सुअवसर भी देंगें। 

रचना: सुश्री अनीता शर्मा
असिस्टेंट प्रोफेसर:
लड़कियों का राजकीय कालेज 
लुधियाना