Saturday, October 1, 2022

प्राचीन कला केंद्र में हुआ नयी परंपरा का आगाज़

केंद्र में महसुस हो रहा था अंतर्राष्ट्रीय स्तर का आयोजन 

चंडीगढ़: 1 अक्टूबर 2022: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन):: 
वो लोग जिन्होंने या तो हमेशां अपनी मातृभाषा बोली या फिर केवल अंग्रेज़ी। भारत की कोई भाषा उन्हें नहीं आती। न वे लोग समझ सकते हैं और न ही बोल सकते हैं। भाषा की इस कठिनाई के बावजूद चंडीगढ़ के प्राचीन कलाकेंद्र में ये विदेश कलाकार और भारत के कलाकार इस तरह एक दुसरे में घुलमिल गए थे जैसे जन्मों जन्मों से एक दुसरे को जानते हों। कला को और शिद्दत से सीखने की प्यास और कला के साथ अंतरंगता ने यह चमत्कार भी कर दिखाया था। माहौल अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक माहौल बना हुआ था। कोई धर्म नहीं, कोई सीमा नहीं, कोई जातिपाति नहीं, कोई धर्म नहीं....! केवल एक ही मज़हब था-कला का मज़हब। प्राचीन कला केंद्र का यह आज का रंग भी देखने वाला था। एक कलामय माहौल। गीत, संगीत और डांस के अनुभवों की ऊंचाई।  दूर दराज से आए कलाकारों से मिल कर और उनकी परफॉर्मेंस को देख कर यूं लगता था जैसे हम किसी अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में मौजूद हों। 

प्राचीन कला केंद्र ने आज यहां अपने एम.एल. कौसर  इंडोर ऑडिटोरियम दोपहर 12:00 बजे  एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया।  केंद्र ने अपनी नयी उपलब्धि का विस्तृत परिचय देने हेतु  प्रेस से मुलाकात की।  इस नए कार्यक्रम के तहत केंद्र के मोहाली परिसर में "गुरु शिष्य परम्परा" के सानिध्य में विभिन्न शास्त्रीय शैलियों के श्रद्धेय गुरुओं के सक्षम मार्गदर्शन में "विधिवत तालीम"   देने के लिए तीन वर्षीय कोर्स की शुरुआत की गई है।   यहां उल्लेख करना प्रासंगिक है कि केंद्र में शास्त्रीय कला के क्षेत्र में तालीम प्राप्त करने वाले विदेशी और भारतीय छात्रों के लिए मेस सुविधाओं के साथ एक सुसज्जित छात्रावास है। विभिन्न देशों से ICCRऔर PKK छात्रवृत्ति के माध्यम से कुछ छात्र पहली अक्टूबर, 2022 से इस गहन शिक्षण कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं। इसी कार्यक्रम के परिचय के दौरान  इन विदेशी छात्रों द्वारा अपने अपने देश की कला का बखूबी प्रदर्शन किया गया।  अपने देश की पारम्परिक वेश भूषा में सजे इन छात्रों ने अपनी देश की कला और संगीत की सुन्दर झलकियां पेश की।  कज़ाकिस्तान और बांग्लादेश से आये इन छात्रों ने अपने देश की कला और संस्कृति का परिचय दिया  

गुरु शिष्य परंपरा का महत्व
अखण्डमंडलकरम व्याप्तम येना चरचाराम |
तत्पदं दर्शीतं ये तस्माई श्रीगुरुवे नमः ||
(उस महान गुरु को नमन, जिसने उस अवस्था को साकार करना संभव बनाया जो पूरे ब्रह्मांड में, सभी जीवित और मृत में व्याप्त है।)
इतिहास और संस्कृति से समृद्ध देश, भारत ने आदिकाल से ही यह महसूस किया है कि युवा व्यक्तित्व  के विकास में एक गुरु का क्या महत्व है। भारतीय संस्कृति में गुरु की भूमिका किसी विषय को पढ़ाने वाले से परे होती है। अपने गुरु से सीखे गए पाठ कहीं अधिक जटिल होते हैं, क्योंकि वे दुनिया के लिए छात्र की आंखें खोलते हैं और अपने विचारों को सही दिशा देते हैं जिसमें उन्हें अपनी ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने और  समृद्ध होने और सफल होने के लिए करना चाहिए।

प्राचीन कला केंद्र के तत्वावधान में छात्र विभिन्न गुरुओं- गुरु शोभा कौसर  जी, गुरु सौभाग्य वर्धन, गुरु बृजमोहन गंगानी, डॉ समीरा कौसर , श्री परवेश और योगी आशु प्रताप से सीखेंगे। कार्यक्रम के लिए छात्रों का पहला बैच पहले ही देश के विभिन्न हिस्सों से और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे साथ जुड़ चुका है।  

ये छात्र जल्द ही अपनी कक्षाएं शुरू करेंगे और अपनी कला-रूपों की बारीकियों को सीखने के साथ-साथ अपने गुरुओं के अनुभवों जो अपने क्षेत्र में उस्ताद हैं और युवा कलाकारों के लिए ज्ञान की सोने की खान से सीखेंगे! 60 से अधिक वर्षों से, प्राचीन कला केंद्र ने कला और संस्कृति के बारे में ज्ञान को बढ़ाने और फैलाने का प्रयास किया है और यह कार्यक्रम उस दिशा में अगला कदम होगा!

कुल मिला कर आज का आयोजन एक नई भव्य शुरुआत का शुभारम्भ था--एक  उदघोषणा जैसा-- जैसा था। प्राचीन कला केंद्र के भव्य सभागार के शांत माहौल में संगीत और नृत्य की लहरियां निमंत्रण दे रही थीं कि आओ और  डुबकी लगाओ। कला के इस आसमान में उड़ान भरो। 

निरंतर सामाजिक चेतना और जनहित ब्लॉग मीडिया में योगदान दें। हर दिन, हर हफ्ते, हर महीने या कभी-कभी इस शुभ कार्य के लिए आप जो भी राशि खर्च कर सकते हैं, उसे अवश्य ही खर्च करना चाहिए। आप इसे नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके आसानी से कर सकते हैं।

No comments:

Post a Comment