17th January 2022 at 10:03 AM
फिल्म "इक महल हो सपनों का" में शामिल था यह लोकप्रिय गीत
राग आधारित फ़िल्मी गीतों की चर्चा का मकसद है आम लोगों तक राग की अहमियत को सादगी से ले जाना। संगीत के इस मर्म को उन लोगों तक भी ले जाना है जिन्होंने कभी राग की तरफ ध्यान ही नहीं दिया लेकिन फिल्म के गीत उन्हें बहुत पसंद होते हैं। इस बार अनीता शर्मा की कलम से हम प्रस्तुत कर रहे हैं राग पहाड़ी पर आधारित फ़िल्मी गीत "दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ दिया।" बहुत से लोकप्रिय गीतों की तरह यह गीत भी राग पहाड़ी पर आधारित है।अनीता शर्मा ने किया है शानदार एनालसिस जिससे कई पहलू देखने को मिलेंगे। --कार्तिका सिंह
लुधियाना: 19 जनवरी 2022 (अनीता शर्मा//संगीत स्क्रीन)::
सन 1975 में आई थी फिल्म "इक महल हो सपनों का।" इस फिल्म के गीत बहुत ही लोकप्रिय हुए थे। इन्हीं में से एक गीत था:
दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ दिया;
दुनिया की आंधियों से भला वह बुझेगा क्या!
संगीतकार रवि की उत्कृठ कृतियों में इस गीत को विशेष स्थान प्राप्त है। स्वयं संगीतकार रवि ने विविध भारती से प्रसारित एक साक्ष्ताकार में इस गीत की रेकार्डिंग से पहले का एक रोचक किस्सा सुनाया और बताया कि जिस दिन मुम्बई में इस गीत की रेकार्डिंग होनी थी उस दिन बंबई में संगीतकारों की हड़ताल थी लेकिन इस गीत के फिल्मांकन की शूटिंग शेडयूल तय होने के कारण संगीतकार रवि ने अकेले रिदिम बॉक्स और हारमोनियम ले कर स्टूडियो में अपनी आवाज़ में गीत की रेकार्डिंग कर के फिल्म के डॉयरेक्टर को दे दी। इस तरह उस नाज़ुक हालात में भी फिल्मांकन पूरा हो गया। बाद में जब संगीतकारों की हड़ताल खत्म हुई तो लता मंगेशकर जी से डेट ले कर पुनः इस गीत की रेकर्डिंग की गई। राग पहाड़ी के बहुत ही खूबसूरत प्रयोग हैं इस गीत में।
राग पहाड़ी में निबद्ध इस गीत की स्थायी 1963 में आई फिल्म "भरोसा" के एक गीत पर ही बनाई गई थी। यह गीत बहुत ही लोकप्रिय हुआ था और इसके बोल थे "वो दिल कहां से लाऊं तेरी याद जो भुला दे...!" इक महल हो सपनों का के इस लोकप्रिय गीत "दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ दिया" की स्थाई बनाई गई थी भरोस फिल्म के गीत--तेरी याद जो भुला दे की धुन के आधार पर ही। इस तरह के खूबसूरत प्रयोग बहुत से अन्य लोकप्रिय गीतों में भी हुए हैं जिनकी चर्चा हम लोग भविष्य में भी करते रहेंगे। जब इस गीत अर्थात दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ धुन की धुन तैयार हो रही थी तो इसके संगीतकार रवि स्वयं पूरी तरह इसी पर केंद्रित थे। कालजयी गीत और कालजयी धुनें इसी तरह की साधना से बनते हैं और युगों युगों तक लोगों के दिल दिमाग पर छाए रहते हैं। इस गीत को तालबद्ध करने के लिए Congo Bongo पर कहरवा ताल के ठेके का भिन्न रूप (धिंड तक तक//धिंड ता ता) बहुत ही अनूठे ढंग से लिया गया। गीत के स्थायी की पहली पंक्ति ओके दोहराने पहले वायलिन पर छोटे से टुकड़े का सुंदर प्रयोग सुनने को मिलता है।
गीत के अन्तरे से पहले के टुकड़े में तार शहनाई (वाद्य) का बहुत ही सुचारु रूप ढंग से प्रयोग किया गया है। अंतरे की पहली पंक्ति के बाद आने वाले संगीत में वायलिन और वायोला का मिश्रित प्रयोग बहुत ही खूबसूरत लगता है।
दुसरे अंतरे से पहले आने वाला संगीत पहले वायलिन और मैडोलियन पर और फिर तार सप्तक में वायलिन, गिटार और तार शहनाई पर पर प्रयुक्त किया गया है। अंतरे की अंतिम पंक्ति के बाद, स्थायी से जोड़ते समय बांसुरी के छोटे से टुकड़े (प ध स रे ग) का समधुर प्रयोग किया गया है। गीत के अंत में मैडोलियन और गिटार के टुकड़े (Piece) से इसे समाप्त किया गया है।
गायिका लता मंगेशकर जी द्वारा गाए इस गीत में कई जगह गले की हरकतों (मुर्कियों) का बहुत ही अच्छा उपयोग देखने को मिलता है। जैसे-दिल में किसी के प्यार का ( S S S स प म य ग रे स नी स्वर समुदाय) स्थान पर मुर्की प्रयोग हुआ है। ऐसा अनूठा प्रयोग करने इस गीत की सुंदरता में चार चाँद लग गए। प्रेमभाव की अनुभूति और प्रभाव इत्यादि भाव इस गीत के प्राणभूत तत्त्व हैं। संक्षेप में प्रेमभाव का ऐसा सुंदर चित्रण विरले गीतों में ही देखने को मिलता है।
पहाड़ी राग पर आधारित गीतों की संख्या बहुत है। एक मोटा कहा जाता है की ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के दौर की बात करें तो 50 फीसदी से अधिक फ़िल्मी गीत इसी पर आधारित रहे।
फिल्म दोस्ती का गीत बहुत ही लोकप्रिय हुआ था---आवाज़ मैं दूंगा---
फिल्म भाभी का गीत बहुत हिट हुआ था चल पंछी---
फिल्म पाकीज़ा में दिल को छूने वाला गीत था--चलो दिलदार चलो--चांद के पार चलो--
फिल्म चौहदवीं का चांद में गीत था--चौहदवीं का चांद हो या आफताब हो--
फिल्म मिलन में एक गीत हिट हुआ था--सावन का महीना पवन करे सोर--
फिल्म दुलारी में एक गीत हिट हुआ था--सुहानी रात चुकी--न जाने तुम आओगे!
फिल्म ममता का गीत था--रहें न रहें हम--महका करेंगे--!
फिल्म ज़िद्दी का लोकप्रिय गीत था--रात समां-झूमे चन्द्रमा--
फिल्म बारादरी में गीत आया था--तस्वीर हूं--तस्वीर नहीं बनती--
फिल्म राजरानी में भजन//गीत था--पायो जी मैंने रामरतन धन पायो
फिल्म ताजमहल का गीत था--जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा--
फिल्म जेवल थीफ में गीत बहुत चला था-- रुला के गया सपना--
गैर फ़िल्मी गायन में एक ग़ज़ल गाई थी जनाब गुलाम अली साहिब ने--दिल में इक लहर सी उठी है अभी--!
फिल्म कश्मीर की कली का एक गीत है--इशारों इशारों में दिल लेने वाले--बता यह हुनर तुमने सीखा कहां से!
फिल्म आराधना के गीतों में एक गीत शामिल था--कोरा कागज़ था यह मन मेरा--लिख दिया नाम जिसपे तेरा!
फिल्म कभी कभी में गीत प्रसिद्ध हुआ था--कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है--
फिल्म आप की कसम का गीत था--करवटें बदलते रहे सारी रात हम! आपकी कसम-!
आप अनुमान लगा सकते हैं की कितनी तरह के भाव--कितनी तरह की धुनें राग पर आधारित हैं। गौरतलब है कि इस राग की उत्पत्ति बिलावल थाट से मानी गई है। इसमें म और नि स्वर अति अल्प प्रयोग हुए हैं। इसलिये इस राग की जाति में इन स्वरों का समावेश नहीं किया गया है और इसे औडव जाति का राग माना गया है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि किसी भी राग की जाति मुख्यत: तीन तरह की मानी जाती है।
1) औडव - जिस राग मॆं 5 स्वर लगें
2) षाडव- राग में 6 स्वरों का प्रयोग हो
3) संपूर्ण- राग में सभी सात स्वरों का प्रयोग होता हो प्रोफेसर
इसे आगे और भी विभाजित किया जा सकता है। जैसे- औडव-संपूर्ण अर्थात किसी राग विशेष में अगर आरोह में 5 मगर अवरोह में सातों स्वर लगें तो उसे औडव-संपूर्ण कहा जायेगा। इसी तरह, औडव-षाडव, षाडव-षाडव, षाडव-संपूर्ण, संपूर्ण-षाडव आदि रागों की जातियाँ हो सकती हैं।इस तरह इसे आधार बना कर यादगारी धुन बनाई जा सकती है जो गीत को भी अमर कर देती है।
इस राग में चंचलता/सुंदरता/प्रेमाभाव सभी को अभिव्यक्त करके विशेषता पूरी तरह से मौजूद है। इसकी चलन चंचल है और यह क्षुद्र प्रकृति का राग है । इसे गाते – बजाते समय राग–सौंदर्य बढ़ाने के लिये अन्य स्वरों का उपयोग विवादी की तरह से करते हैं। इसे भूपाली से बचाने के लिये अवरोह में शुद्ध म प्रयोग करते हैं। गाने–बजाने का समय रात्रि का प्रथम प्रहर है, किन्तु प्रचार में इसे किसी भी समय गा लिया जाता है । मन्द्र धैवत पर न्यास करने से पहाड़ी राग स्पष्ट होता है। इस राग में दिलचस्पी रखने वाले व्यक्तिगत तौर पर भी अपनी गुजरिश भेज सकते हैं। जिन्हें इस राग में गाने की मुहरत है उनका भी स्वागत है। इस राग में
वादी स्वर सा और सम्वादी प है। इसे गाने-बजाने का समय–रात्रि का प्रथम प्रहर ही गिना जाता है।
आरोह- सा रे ग प ध सां।
अवरोह- सां ध प ग रे सा।
आज की चर्चा का विषय रहे गीत के बोल इस प्रकार रहे। पूरा गीत दिया जा रहा है।
Movie/Album: इक महल हो सपनों का (1975)
Music By: रवि
Lyrics By: साहिर लुधियानवी
Performed By: लता मंगेशकर, किशोर कुमार
दिल में किसी के प्यार का
जलता हुआ दीया
दुनिया की आँधियों से भला
ये बुझेगा क्या
साँसों की आँच पा के भड़कता रहेगा ये
सीने में दिल के साथ धड़कता रहेगा ये
वो नक्श क्या हुआ, जो मिटाये से मिट गया
वो दर्द क्या हुआ, जो दबाये से दब गया
दिल में किसी के...
ये ज़िन्दगी भी क्या है, अमानत उन्हीं की है
ये शायरी भी क्या है, इनायत उन्हीं की है
अब वो करम करे, के सितम उनका फ़ैसला
हमने तो दिल में प्यार का शोला जगा लिया
दिल में किसी के...
आपको यह प्रस्तुति//यह अंदाज़/यह जानकारी सब कैसा लगा अवश्य बताएं। इस रचना पर अर्थपूर्ण और अच्छे कुमेंटस करने वालों को हम अपने आयोजनों में आने का सुअवसर भी देंगें।
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