Saturday, March 11, 2023

मोनिका शाह के शास्त्रीय गायन से सजी शाम

 Saturday 11th March 2023 at 7:08 PM

मंच से बिखरा राग जैजावंती का जादू 


चंडीगढ़
: 11 मार्च 2023: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन डेस्क)::

प्राचीन कलाकेंद्र एक ऐसा संस्थान है जिस ने आज के युग में भी संगीत की शुद्धता और नियमों को ध्यान में रख कर न केवळ स्वयं साधना की है बल्कि लाखों अन्य साधकों को भी।  आज भी यहां विशेष आयोजन था। आज जानीमानी शास्त्रीय गायिका मोनिका शाह।  

गीत तो और भी बहुत से होंगें लेकिन इस समय बात करते है इतिहास और फिल्मों की। सन 1960 में आई एक ऐसी ही जानीमानी फिल्म मुगले आज़म की याद लोगों के ज़ेहन मेंअभी तक ताज़ा है। उसकी फोटोग्राफी भी बेहद महंगी थी और उसके सभी गीत भी लोकप्रिय हुए थे। इन गीतों ने कई नए रेकार्ड बनाए और एक इतिहास रचा। लोगों को फिल्म का नाम भी याद रहता है और गीतों के मुखड़े भी लेकिन इन गीतों की धुनों को किस राग के आधार पर तैयार किया गया था इसका ख्याल मन में काम ही उठता है। इस आधार की इस राग की चर्चा होती है पाचन कलाकेंद्र के आयोजनों में। 

आज भी राग का विचार शिद्द्त से उभरा प्राचीन कला केंद्र का आज का आयोजन देख कर। आज प्राचीन कला केंद्र के प्रांगण में राग जैजावंती की खूबसूरती बुलंदी के साथ एक बार फिर  सामने आई। शायद बहुत कम लोग जानते होंगें कि मुगलेआज़म फिल्म की यह प्रसिद्ध क़वाली इसी राग पर आधारित थी।  इसके बोल और अंदाज़ एक नया इतिहास रच गए। बहुत सी फिल्मों के जादूभरे गीतों का आधार रहा राग जैजावंती। जिस क़्वाली  की हम यहां चर्चा कर रहे हैं उसके बोल थे: 

यह दिल की लगी कम क्या होगी!

यह इश्क़ भला कम क्या होगा!

जब रात है ऐसी मतवाली! 

फिर सुबह का आलम क्या होगा!

गीत लिखा था शकील बदायुनी साहिब ने और इसे संगीत से सजाया था जनाब नौशाद साहिब ने। राग जैजावंती पर आधारित इस गीत की धुन ने बह श्रोताओं  में एक विशेष स्थान बनाया। ताल था दादरा। 

इस गीत को अपनी आवाज़ दे कर अमरता प्रदान की सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर जी ने। 

आज इस राग पर विशेष कार्यक्रम सुन पाना सचमुच किसी उपलब्धि से कम नहीं था। प्राचीन कला केन्द्र द्वारा आयोजित की जाने वाली मासिक बैठकों की श्रृंखला में आज केन्द्र की 282 वीं मासिक बैठक का आयोजन केन्द्र के एम.एल.कौसर सभागार में किया गया जिसमें अहमदाबाद से आई शास्त्रीय गायिका डा. मोनिका शाह द्वारा एक मधुर शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति पेश की गई। मोनिका शाह पद्म विभूषण ठुमरी क्वीन के नाम से विख्यात गिरिजा देवी जी की शिष्या हैं । इन्होंनें 1500 से ज्यादा कार्यक्रमों में अपनी खूबसूरत प्रस्तुतियों से संगीत प्रेमियों का दिल जीता है । इन्होंनें देश ही नहीं विदेशों में अपनी कला का बखूबी प्रदर्शन किया है। इन्होंनें आराधना संगीत अकादमी की स्थापना की जिसमें लगभग 200 विद्यार्थी संगीत की शिक्षा ले रहे हैं ।

 आज के कार्यक्रम की शुरूआत राग जैजैवंती से की गई जिसमें पारम्परिक आलाप के बाद इन्होंनें बड़े ख्याल की रचना ‘‘लड़ा में सजनी’’ जो कि विलम्बित एक ताल में निबद्ध थी पेश की । इसके उपरांत मोनिका ने मध्य लय तीन ताल में निबद्ध रचना ‘‘विनती की करीए बात जो’’ पेश की। इसके उपरांत राग मिश्र खमाज ताल में निबद्ध ठुमरी  जिसके बोल थे ‘‘जग पड़ी मैं तो पिया के जगाए’’ प्रस्तुत करके खूब तालियां बटोरी ।

कार्यक्रम के अंत में केन्द्र के सचिव श्री सजल कौसर ने कलाकारों को सम्मानित किया ।हुत से लोग जो केवल गीत सुनते हैं उनके लिए तो आज भी यह गीत विशेष हैं। जो लोग संगीत की गहरी समझ रखते हुए इसके राग आधारित पहलुओं को भी जानना चाहते हैं। इस दिशा में हमरे विशेषज्ञों ने जो बताया उसका सारांश इस प्रकार है:

यहाँ इस बात की चर्चा करते हुए उल्लेखनीय है कि आरोह में पंचम के साथ शुद्ध और धैवत के साथ कोमल नि प्रयोग किया जाता है, जैसे म प नि सां, ध नि रे। किन्तु अवरोह में कोमल निषाद प्रयोग किया जाता है। इस राग की प्रकृति गंभीर है तथा चलन तीनो सप्तकों में समान रूप से होती है एवं इसमें छोटा ख्याल, बडा ख्याल, ध्रुपद, धमार सभी शोभा देते है।

गौरतलब है कि इस राग में राग अल्हैया, राग छाया व राग देस का अंग दूध-पानी कि भांति मिला हुआ है। यथा - राग अल्हैया का अंग- ग प ध नि१ ; ग नि१ ; नि१ ध प ध ग म ग रे ; रे ग१ रे सा; राग छाया का अंग- रे रे ग रे; रे ग म प ; म ग ; म ग रे; ,प रे रे ग१ रे सा, राग देस का अंग- रे रे; म प नि; नि सा'; नि सा' रे' नि१ ध; प ध म ग ; म ग रे; ,नि सा ,ध ,नि१ रे।

बहुत से गुणी कलाकार इस मामले पूरी तरह से पारंगत हैं। इस तरह के गायन की कमांड  रखने वाले इस राग को राग बागेश्री के आरोह के द्वारा भी गाते हैं परंतु देस अंग का आरोह यथा रे म प नि सा' वाला रूप ही प्रचार में अधिक है। इस राग का स्वर विस्तार तीनों सप्तकों में किया जाता है।

इस तरह कुछ और गीत भी इसी राग पर आधारित रहे। इन्हीं में से एक गीत था;

ज़िंदगी आज मेरे नाम से शर्माती है: यह गीत फिल्म "सन ऑफ इंडिया" का था जो सन 1962 में आई थी। ताल दादरा रहा। इस गीत को आवाज़ दी थी मोहम्मद रफ़ी साहिब ने और  से सजाया था जनाब नौशाद साहिब ने। 

निकट भविष्य में भी हम आपके रूबरू इसी तरह की जानकारी लाते रहेंगे। आप भी संगीत स्क्रीन से जुड़िए। विवरण यहां क्लिक कर के देख सकते हैं।