Wednesday, April 26, 2023

प्राचीन कला केंद्र कलाकारों की आर्थिक मज़बूती के लिए भी गंभीर

डांस और कला के  क्षेत्र  में कैरियर के रास्ते भी बहुत अच्छे हैं 


चंडीगढ़
: 26 अप्रैल 2023: (कार्तिका सिंह//रेक्टर कथूरिया//संगीत स्क्रीन)::

कला के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग समाज और संसार उत्कृष्ट स्थिति को दर्शाने वालों में शामिल होते हैं। समाज के विकास और खिलावट का पता कला क्षेत्र से जुड़े लोग ही बताते हैं। पूरी पूरी उम्र तक चलनेवाली साधना जब कई बार विरासत में मिलती है तो अहसास होता है की यह साधना केवल एक उम्र की नहीं बल्कि जन्मों जन्मों की साधना है। इसके बावजूद जब कभी कभी समाज के विभिन्न अवसरों पर उनका आमना सामना ज़िंदगी के कड़े इम्तिहानों से होता है तो उनसे अक्सर पूछा जाता है कि कला तो हुई, डांस भी हुआ, संगीत भी हुआ लेकिन करते क्या हो? इस सवाल को पूछने का मतलब होता है पैसा कहां से कमाते हो? रोज़ी रोटी कहां से चलती है? आसमान को छूती महंगाई का ज़माना है इसलिए आजकल दाल रोटी चलना भी सहज नहीं रहा। कला के क्षेत्र में तो स्थिति और भी संवेदनशील है। कला के  कुछ अलग किस्म के अपने खर्चे भी होते हैं। वस्त्रों से ले कर साज़ों तक। 

प्राचीन कला केंद्र ने इस स्थिति को एक चुनौती की तरह लिया है और कला के क्षेत्र में जुड़े लोगों को ऐसे सवालों का सामना करते समय यह कहने के सक्षम बनाया है कि और कुछ का क्या मतलब? हम और कुछ क्यूं करें? हमें अपनी कला की साधना सम्मानजनक जीवन जीने के लिए बहुत अच्छी आमदनी भी देती है। हमें जीवनयापन के लिए कुछ और करने की ज़रूरत ही नहीं। 

आज 26 अप्रैल 2023 की दोपहर को जब प्राचीन कला केंद्र के चंडीगढ़ कार्यालय में पत्रकार वार्ता चल रही थी तो इस संस्थान की संचालन और प्रबंधन समिति से जुडी हुई डाक्टर  समीरा कौसर ने स्वयं ही इस मुद्दे को उठाया। गौरतलब है कि इस मुद्दे पर बात करने से अक्सर कलाकार लोग घबरा जाते हैं या शरमा जाते हैं क्यूंकि शराब की पार्टियों और दिखावे पर बेशुमार खर्चे करने वाले हमारे समाज में अभी भी कला और कलाकारों के लिए खुले दिल से खर्च करने का ट्रेंड नहीं बन सका। उन्हें अपनी टीम के सदस्यों को कुछ शुल्क देने और आनेजाने का खर्चा निकलने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं। आर्थिक तंगियों तुर्शियों को दूर करके की पहल करते हुए अब प्राचीन कला केंद्र इस दिशा में विशेष योजनाएं ले कर अग्रसर है। 

दिलचस्प बात यह है कि प्रचीन कला केंद्र केवल चंडीगढ़ में ही नहीं बल्कि देश और दुनिया के बहुत से हिस्सों में सक्रिय है। इसके सर्टिफिकेट देश और दुनिया भर में मान्यता प्राप्त हैं। शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य की विद्या के साथ ही एक शुरुआत, उस अर्जित विद्या से रोज़गार की।  कला के क्षेत्र में रोज़गार के नए अवसर पैदा करके कला केंद्र एक नई पहल की है।  भारतीय शास्त्रीय कला तथा संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए केंद्र द्वारा एक नए कदम का आगाज़ किया है, जिसमें राजधानी चंडीगढ़ तथा आसपास के प्रतिष्ठित स्कूलों के साथ एक संयुक्त उधम यानि कि कोलैब्रेशन की जाएगी। जिस में स्कूली बच्चों को अपने ऐकेडेमिक कोर्स के साथ शास्त्रीय संगीत, नृत्य एवं कोमल कला के कोर्सेज करवाए जायेंगे। कथक, हिंदुस्तानी संगीत और पेंटिंग की क्लासेज स्कूल ख़त्म होने के बाद स्कूल परिसर में ही इच्छुक छात्रों के लिए करवाई जाएंगी। जिनसे छात्रों को सर्वश्रेठ शिक्षकों से सीखने के साथ ही उनके कौशल व ज्ञान को विकसित करने, तथा उनके समग्र शैक्षिक अनुभव को समृद्ध करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करेगी। हमारी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार के लिए युवा पीड़ी को कलात्मिक गतिविधियों से जोड़ना अपने आप में एक सराहनीय कदम है।  

कला में पारंगत करने वाली शिक्षा देने के साथ कैरियर और रोज़गार के अवसर भी आवश्यक हैं। इस बात को भी गंभीतरता से पहचाना है प्राचीन कला केंद्र ने। इस के साथ शास्त्रीय कलाओं में मास्टर्स एवं पी.एच.डी  तक की डिग्री प्राप्त कर चुके टीचर्स के लिए भी ये एक अहम अवसर साबित होगा। इन कलाओं में विद्या प्राप्ति के बाद रोज़गार के अवसर बहुत कम होते हैं, ऐसे में कला केंद्र की तरफ़ से ऐसी पहल एक नया आयाम साबित करेगी।  जिस को पूर्ण करने के लिए चंडीगढ़ के बनयान ट्री स्कूल के डायरेक्टर कर्नल जी. एस. चड्डा तथा कुरुक्षेत्र के विजडम वर्ल्ड स्कूल के डायरेक्टर श्री विनोद रावल एवं श्रीमती अनीता रावल आगे आये हैं।  इन दोनों स्कूलों से इस कदम की शुरुआत होगी। इस पूरे प्रोजेक्ट के मैनेजर श्री पार्थ कौसर होंगे।  ग्रेड 1 से लेकर 12 कक्षा तक कोई भी विद्यार्थी इसमें भाग ले सकता है।  बनयान ट्री स्कूल द्वारा ये कोर्स पूरी तरह से फ्री होगा, अर्थात छात्रों को संगीत व नृत्य की शिक्षा के लिए कोई भी एक्स्ट्रा चार्ज नहीं देना होगा।  वहीँ विजडम वर्ल्ड स्कूल द्वारा छात्रों के माता-पिता को इन् कोर्सेज में अपने बच्चों के साथ भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा। 

हर सवाल का पूरी बारीकी से जवाब देने के साथ ही डॉ समीरा कौसर ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि, इंटरनेट अथवा यूट्यूब जैसे ऑनलाइन प्लेटफार्म से नृत्य एवं संगीत सीखने वाले छात्रों को भी एहसास होगा कि, पूर्ण तौर पर प्रतिष्ठित गुरु से सीखने का अनुभव कैसा होता है? गुरु माँ  डॉ शोभा कौसर के आशीर्वाद सहित उनके अधीन शिक्षा ग्रहण कर चुके केंद्र के छात्रों एक गुरु के रूप में पढ़ाने का अवसर भी मिलेगा।  इसके साथ ही ये सभी कोर्स शासकीय निकायों द्वारा मान्यता प्राप्त प्रमाणपत्रों द्वारा समर्थित है।  ये सर्टिफिकेट उनके आगामी जीवन में भी एक मूल्यवान प्रमाण पत्र की तरह एक अतिरिक्त निवेश की भांति  होगा जिस से छात्र कला के क्षेत्र में  कुछ नया सीख पाने में सक्षम होंगे।

अंत में एक बात और भी यहाँ ज़रूरी लगती है। जुर्म को कंट्रोल करने और जुर्म को मिटाने के लिए जितने खर्चे सरकारें करती हैं और जितने झंझट समाज के विभिन्न वर्ग करते हैं उन सभी प्रयासों को खर्चों का दो चार परसेंट भी युवा वर्ग को जुर्म की दुनिया का आकर्षण से हटा कर कला के ज़रिए नवनिर्माण की तरफ मोड़ सकता है। इससे पहले कि कोई समाज दुश्मन हमारे युवाओं के हाथों में बंदूक पकड़ा जाए उससे पहले ही इन युवाओं के सामने कला के क्षेत्र में अच्छी आमदनी वाले रास्ते बनाना बहुत ही फायदेमंद रहेगा। प्राचीन कला केंद्र युवा वर्ग को सपने दिखाने के साथ साथ इन सपनों को साकार करने के लिए भी बहुत कुछ करता है। अगर समाज और सत्ता भी इन प्रयसों में इस संस्थान का साथ दें तो सफलता हैरानकुन होगी। 

Saturday, March 11, 2023

मोनिका शाह के शास्त्रीय गायन से सजी शाम

 Saturday 11th March 2023 at 7:08 PM

मंच से बिखरा राग जैजावंती का जादू 


चंडीगढ़
: 11 मार्च 2023: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन डेस्क)::

प्राचीन कलाकेंद्र एक ऐसा संस्थान है जिस ने आज के युग में भी संगीत की शुद्धता और नियमों को ध्यान में रख कर न केवळ स्वयं साधना की है बल्कि लाखों अन्य साधकों को भी।  आज भी यहां विशेष आयोजन था। आज जानीमानी शास्त्रीय गायिका मोनिका शाह।  

गीत तो और भी बहुत से होंगें लेकिन इस समय बात करते है इतिहास और फिल्मों की। सन 1960 में आई एक ऐसी ही जानीमानी फिल्म मुगले आज़म की याद लोगों के ज़ेहन मेंअभी तक ताज़ा है। उसकी फोटोग्राफी भी बेहद महंगी थी और उसके सभी गीत भी लोकप्रिय हुए थे। इन गीतों ने कई नए रेकार्ड बनाए और एक इतिहास रचा। लोगों को फिल्म का नाम भी याद रहता है और गीतों के मुखड़े भी लेकिन इन गीतों की धुनों को किस राग के आधार पर तैयार किया गया था इसका ख्याल मन में काम ही उठता है। इस आधार की इस राग की चर्चा होती है पाचन कलाकेंद्र के आयोजनों में। 

आज भी राग का विचार शिद्द्त से उभरा प्राचीन कला केंद्र का आज का आयोजन देख कर। आज प्राचीन कला केंद्र के प्रांगण में राग जैजावंती की खूबसूरती बुलंदी के साथ एक बार फिर  सामने आई। शायद बहुत कम लोग जानते होंगें कि मुगलेआज़म फिल्म की यह प्रसिद्ध क़वाली इसी राग पर आधारित थी।  इसके बोल और अंदाज़ एक नया इतिहास रच गए। बहुत सी फिल्मों के जादूभरे गीतों का आधार रहा राग जैजावंती। जिस क़्वाली  की हम यहां चर्चा कर रहे हैं उसके बोल थे: 

यह दिल की लगी कम क्या होगी!

यह इश्क़ भला कम क्या होगा!

जब रात है ऐसी मतवाली! 

फिर सुबह का आलम क्या होगा!

गीत लिखा था शकील बदायुनी साहिब ने और इसे संगीत से सजाया था जनाब नौशाद साहिब ने। राग जैजावंती पर आधारित इस गीत की धुन ने बह श्रोताओं  में एक विशेष स्थान बनाया। ताल था दादरा। 

इस गीत को अपनी आवाज़ दे कर अमरता प्रदान की सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर जी ने। 

आज इस राग पर विशेष कार्यक्रम सुन पाना सचमुच किसी उपलब्धि से कम नहीं था। प्राचीन कला केन्द्र द्वारा आयोजित की जाने वाली मासिक बैठकों की श्रृंखला में आज केन्द्र की 282 वीं मासिक बैठक का आयोजन केन्द्र के एम.एल.कौसर सभागार में किया गया जिसमें अहमदाबाद से आई शास्त्रीय गायिका डा. मोनिका शाह द्वारा एक मधुर शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति पेश की गई। मोनिका शाह पद्म विभूषण ठुमरी क्वीन के नाम से विख्यात गिरिजा देवी जी की शिष्या हैं । इन्होंनें 1500 से ज्यादा कार्यक्रमों में अपनी खूबसूरत प्रस्तुतियों से संगीत प्रेमियों का दिल जीता है । इन्होंनें देश ही नहीं विदेशों में अपनी कला का बखूबी प्रदर्शन किया है। इन्होंनें आराधना संगीत अकादमी की स्थापना की जिसमें लगभग 200 विद्यार्थी संगीत की शिक्षा ले रहे हैं ।

 आज के कार्यक्रम की शुरूआत राग जैजैवंती से की गई जिसमें पारम्परिक आलाप के बाद इन्होंनें बड़े ख्याल की रचना ‘‘लड़ा में सजनी’’ जो कि विलम्बित एक ताल में निबद्ध थी पेश की । इसके उपरांत मोनिका ने मध्य लय तीन ताल में निबद्ध रचना ‘‘विनती की करीए बात जो’’ पेश की। इसके उपरांत राग मिश्र खमाज ताल में निबद्ध ठुमरी  जिसके बोल थे ‘‘जग पड़ी मैं तो पिया के जगाए’’ प्रस्तुत करके खूब तालियां बटोरी ।

कार्यक्रम के अंत में केन्द्र के सचिव श्री सजल कौसर ने कलाकारों को सम्मानित किया ।हुत से लोग जो केवल गीत सुनते हैं उनके लिए तो आज भी यह गीत विशेष हैं। जो लोग संगीत की गहरी समझ रखते हुए इसके राग आधारित पहलुओं को भी जानना चाहते हैं। इस दिशा में हमरे विशेषज्ञों ने जो बताया उसका सारांश इस प्रकार है:

यहाँ इस बात की चर्चा करते हुए उल्लेखनीय है कि आरोह में पंचम के साथ शुद्ध और धैवत के साथ कोमल नि प्रयोग किया जाता है, जैसे म प नि सां, ध नि रे। किन्तु अवरोह में कोमल निषाद प्रयोग किया जाता है। इस राग की प्रकृति गंभीर है तथा चलन तीनो सप्तकों में समान रूप से होती है एवं इसमें छोटा ख्याल, बडा ख्याल, ध्रुपद, धमार सभी शोभा देते है।

गौरतलब है कि इस राग में राग अल्हैया, राग छाया व राग देस का अंग दूध-पानी कि भांति मिला हुआ है। यथा - राग अल्हैया का अंग- ग प ध नि१ ; ग नि१ ; नि१ ध प ध ग म ग रे ; रे ग१ रे सा; राग छाया का अंग- रे रे ग रे; रे ग म प ; म ग ; म ग रे; ,प रे रे ग१ रे सा, राग देस का अंग- रे रे; म प नि; नि सा'; नि सा' रे' नि१ ध; प ध म ग ; म ग रे; ,नि सा ,ध ,नि१ रे।

बहुत से गुणी कलाकार इस मामले पूरी तरह से पारंगत हैं। इस तरह के गायन की कमांड  रखने वाले इस राग को राग बागेश्री के आरोह के द्वारा भी गाते हैं परंतु देस अंग का आरोह यथा रे म प नि सा' वाला रूप ही प्रचार में अधिक है। इस राग का स्वर विस्तार तीनों सप्तकों में किया जाता है।

इस तरह कुछ और गीत भी इसी राग पर आधारित रहे। इन्हीं में से एक गीत था;

ज़िंदगी आज मेरे नाम से शर्माती है: यह गीत फिल्म "सन ऑफ इंडिया" का था जो सन 1962 में आई थी। ताल दादरा रहा। इस गीत को आवाज़ दी थी मोहम्मद रफ़ी साहिब ने और  से सजाया था जनाब नौशाद साहिब ने। 

निकट भविष्य में भी हम आपके रूबरू इसी तरह की जानकारी लाते रहेंगे। आप भी संगीत स्क्रीन से जुड़िए। विवरण यहां क्लिक कर के देख सकते हैं। 

Wednesday, January 4, 2023

शीत लहर के बावजूद आईसीसीआर और प्राचीन कला केंद्र की एक नई पहल

Wednesday 4th January 2023 at  08:01 PM

पंजाबी लोक गीतों और लोक नृत्यों की एक रंगीन शाम का आयोजन

आईसीसीआर की हॉरिजोन  सीरीज के तहत इस संगीत संध्या का आयोजन किया


चंडीगढ़
//मोहाली: 4 जनवरी 2022: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन डेस्क)::

कलियुग के इस दौर में जब शीत लहर के मुकाबले का बहाना बना कर नशे के दौर चलते हैं और इस तरह के बहुत से दुसरे आयोजन भी होते हैं उस समय भारतीय संगीत कला को समर्पित दो प्रतिष्ठित संस्कृतिक संस्थाएं अभी भी स्वस्थ मनोरंजन और सच्ची कला की साधना के पथ पर अग्रसर हैं। आईसीसीआर और प्राचीन  कला केंद्र के संयुक्त तत्वाधान में  आज इसी बात को साबित करता एक और आयोजन हुआ। यह आयोजन पंजाबी लोकगीतों और लोक नृत्य पर आधारित था। इस रंगारंग संध्या का आयोजन प्राचीन कला केंद्र के डॉ शोभा कौसर सभागार, सेक्टर-71, मोहाली में शाम पांच बजे से किया गया। देखते ही देखते माहौल पूरी तरह से कला के रंग में रंग गया। पंजाब के गीत और पंजाबी भगंडा के बार फिर छाए रहे। 

इस कार्यक्रम में पंजाब के प्रसिद्ध कलाकार आत्मजीत सिंह की टीम ने उनके मार्गदर्शन में पंजाबी लोक संगीत के सभी रंग जैसे गिद्दा भांगड़ा, झूमर, गीत आदि प्रस्तुत किए। हर आइटम कमाल की रही। दर्शकों और श्रोताओं को लुभाते हुए, झूमने के मूड में लाती हुई हुए पाँव को थिरकन का अहसास दिलाते हुए यह सही आइटमें बहुत ही सफलता से मंच पर मंचित हुईं। 

एस ए एस नगर के डिप्टी कमिश्नर श्री अमित तलवार आईएएस ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की और सीनियर सिटीजन एसोसिएशन चैप्टर 3 मोहाली के अध्यक्ष श्री प्रिंसिपल चौधरी विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस मौके पर केंद्र की रजिस्ट्रार डॉ. शोभा कौसर, सचिव सजल कौसर और आईसीसीआर के क्षेत्रीय सलाहकार प्रो. हरविंदर सिंह भी मौजूद थे। 


कार्यक्रम की शुरुआत एक भक्ति गीत 'शुकर दाता तेरा शुक्र दाता'
से हुई, इसके बाद एक लोक आर्केस्ट्रा का प्रदर्शन किया गया, जिसमें सभी लोक वाद्यों की भूमिका और जीवन से दर्शकों को परिचित कराया गया, इसके बाद लुड्डी  नामक एक पंजाबी लोक नृत्य का मंचन किया गया जिसका  दर्शकों ने खूब आनंद लिया। इसके उपरांत लोक गीत लम्बी धौन कसीदा कड़दी पेश किया गया।  इसके बाद 50 प्लस युवकों द्वारा  झूमर प्रस्तुत किया गया , जिसे दर्शकों की खूब वाहवाही भी मिली। यह शानदार आइटम सचमुच जानदार भी थी। दमदार ज़िंदगी जीने की प्रेरणा देती हुई आइटम पंजाब के जज़्बे और जोश को भी ब्यान करती थी। 

कार्यक्रम के अगले भाग में हमेशा से पंजाबियों का पसंदीदा लोकगीत मिर्ज़ा प्रस्तुत किया गया, जिसके बाद इस कार्यक्रम में लड़कियों के गिद्धों ने अलग-अलग रंग बिखेरे जिस से दर्शक भी झूम उठे। 

इसके बाद लोकप्रिय पंजाबी गीत तूड़ी तंद  सौन हाड़ी  वेच वटके की प्रस्तुति दी गई और  इस गीत ने दर्शकों  को भी झूमने पर मजबूर कर दिया। कार्यक्रम का अंत भांगड़ा के बिना अधूरा है इसलिएज़ोरदार भांगड़ा के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। दर्शकों ने इस रंग बिरंगी शाम का खूब लुत्फ उठाया।

Saturday, October 1, 2022

प्राचीन कला केंद्र में हुआ नयी परंपरा का आगाज़

केंद्र में महसुस हो रहा था अंतर्राष्ट्रीय स्तर का आयोजन 

चंडीगढ़: 1 अक्टूबर 2022: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन):: 
वो लोग जिन्होंने या तो हमेशां अपनी मातृभाषा बोली या फिर केवल अंग्रेज़ी। भारत की कोई भाषा उन्हें नहीं आती। न वे लोग समझ सकते हैं और न ही बोल सकते हैं। भाषा की इस कठिनाई के बावजूद चंडीगढ़ के प्राचीन कलाकेंद्र में ये विदेश कलाकार और भारत के कलाकार इस तरह एक दुसरे में घुलमिल गए थे जैसे जन्मों जन्मों से एक दुसरे को जानते हों। कला को और शिद्दत से सीखने की प्यास और कला के साथ अंतरंगता ने यह चमत्कार भी कर दिखाया था। माहौल अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक माहौल बना हुआ था। कोई धर्म नहीं, कोई सीमा नहीं, कोई जातिपाति नहीं, कोई धर्म नहीं....! केवल एक ही मज़हब था-कला का मज़हब। प्राचीन कला केंद्र का यह आज का रंग भी देखने वाला था। एक कलामय माहौल। गीत, संगीत और डांस के अनुभवों की ऊंचाई।  दूर दराज से आए कलाकारों से मिल कर और उनकी परफॉर्मेंस को देख कर यूं लगता था जैसे हम किसी अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में मौजूद हों। 

प्राचीन कला केंद्र ने आज यहां अपने एम.एल. कौसर  इंडोर ऑडिटोरियम दोपहर 12:00 बजे  एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया।  केंद्र ने अपनी नयी उपलब्धि का विस्तृत परिचय देने हेतु  प्रेस से मुलाकात की।  इस नए कार्यक्रम के तहत केंद्र के मोहाली परिसर में "गुरु शिष्य परम्परा" के सानिध्य में विभिन्न शास्त्रीय शैलियों के श्रद्धेय गुरुओं के सक्षम मार्गदर्शन में "विधिवत तालीम"   देने के लिए तीन वर्षीय कोर्स की शुरुआत की गई है।   यहां उल्लेख करना प्रासंगिक है कि केंद्र में शास्त्रीय कला के क्षेत्र में तालीम प्राप्त करने वाले विदेशी और भारतीय छात्रों के लिए मेस सुविधाओं के साथ एक सुसज्जित छात्रावास है। विभिन्न देशों से ICCRऔर PKK छात्रवृत्ति के माध्यम से कुछ छात्र पहली अक्टूबर, 2022 से इस गहन शिक्षण कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं। इसी कार्यक्रम के परिचय के दौरान  इन विदेशी छात्रों द्वारा अपने अपने देश की कला का बखूबी प्रदर्शन किया गया।  अपने देश की पारम्परिक वेश भूषा में सजे इन छात्रों ने अपनी देश की कला और संगीत की सुन्दर झलकियां पेश की।  कज़ाकिस्तान और बांग्लादेश से आये इन छात्रों ने अपने देश की कला और संस्कृति का परिचय दिया  

गुरु शिष्य परंपरा का महत्व
अखण्डमंडलकरम व्याप्तम येना चरचाराम |
तत्पदं दर्शीतं ये तस्माई श्रीगुरुवे नमः ||
(उस महान गुरु को नमन, जिसने उस अवस्था को साकार करना संभव बनाया जो पूरे ब्रह्मांड में, सभी जीवित और मृत में व्याप्त है।)
इतिहास और संस्कृति से समृद्ध देश, भारत ने आदिकाल से ही यह महसूस किया है कि युवा व्यक्तित्व  के विकास में एक गुरु का क्या महत्व है। भारतीय संस्कृति में गुरु की भूमिका किसी विषय को पढ़ाने वाले से परे होती है। अपने गुरु से सीखे गए पाठ कहीं अधिक जटिल होते हैं, क्योंकि वे दुनिया के लिए छात्र की आंखें खोलते हैं और अपने विचारों को सही दिशा देते हैं जिसमें उन्हें अपनी ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने और  समृद्ध होने और सफल होने के लिए करना चाहिए।

प्राचीन कला केंद्र के तत्वावधान में छात्र विभिन्न गुरुओं- गुरु शोभा कौसर  जी, गुरु सौभाग्य वर्धन, गुरु बृजमोहन गंगानी, डॉ समीरा कौसर , श्री परवेश और योगी आशु प्रताप से सीखेंगे। कार्यक्रम के लिए छात्रों का पहला बैच पहले ही देश के विभिन्न हिस्सों से और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे साथ जुड़ चुका है।  

ये छात्र जल्द ही अपनी कक्षाएं शुरू करेंगे और अपनी कला-रूपों की बारीकियों को सीखने के साथ-साथ अपने गुरुओं के अनुभवों जो अपने क्षेत्र में उस्ताद हैं और युवा कलाकारों के लिए ज्ञान की सोने की खान से सीखेंगे! 60 से अधिक वर्षों से, प्राचीन कला केंद्र ने कला और संस्कृति के बारे में ज्ञान को बढ़ाने और फैलाने का प्रयास किया है और यह कार्यक्रम उस दिशा में अगला कदम होगा!

कुल मिला कर आज का आयोजन एक नई भव्य शुरुआत का शुभारम्भ था--एक  उदघोषणा जैसा-- जैसा था। प्राचीन कला केंद्र के भव्य सभागार के शांत माहौल में संगीत और नृत्य की लहरियां निमंत्रण दे रही थीं कि आओ और  डुबकी लगाओ। कला के इस आसमान में उड़ान भरो। 

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Saturday, September 24, 2022

परंपरा: प्राचीन कला केन्द्र के छात्रों द्वारा खूबसूरत प्रस्तुतियां

24th September 2022 at 5:28 PM
 अपने गुरूओं से प्राप्त संगीत शिक्षा का बखूबी प्रदर्शन किया 

मोहाली
: 24 सितंबर 2022: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन)::

झुलसा वाली गर्मी ने विदा लेनी शुरू कर दी
और तन को शी
त लहर का अहसास कराने वाली सर्दियों ने भी दस्तक दे दी है। मौसम सुहावना सा हो चला है। दिल दिमाग प्रकृति के संगीत से झंकृत होते भी महसूस होने लगते हैं। निरंतर हो रही बरसात इस महत्वपूर्ण तब्दीली की गवाही भी दे रही थी। 
बारिश के कारण रास्ते भी पानी से भरे हुए थे लेकिन  बहुत से लोग इस का आनंद लूट रहे थे। एक आनंद सा छाया हुआ था। बरसात की एक रिमझिम बाहर हो रही थी और संगीत की एक रिमझिम हाल के अंदर सभी के अंतर्मन पर हो रही थी। सब अपने आप में व्यस्त और मगन। ऐसा कोई नहीं था जो मन और अंतरात्मा को मिल रही शीतलता का आनंद न उठा रहा हो। बाहरी मौसम की तब्दीली के साथ साथ अंतर्मन भी एक तब्दीली चाह रहा था और वह तब्दीली दिखने भी लगी लेकिन इसकी गवाही कौन दे? चंडीगढ़ और मोहाली में स्थित प्राचीन कलाकेंद्र के दोनों परिसरों में आज भी चहल पहल थी। गुरुकुल के सम्मान की तरह शिक्षा पाए हुए छात्र छात्राएं अपने रंग में रंगे हुए थे। उनके अंतर्मन में संगीत के आनंद की बरसात हो रही थी जो जन्मों जन्मों के ताप संताप हर लेती है। इस संगीत की सुर के साथ मिल कर बारिश की बूँदें किसी अमृत वर्षा की तरह महसूस हो रहीं थीं। 

गौरतलब है कि प्राचीन कला केन्द्र आज किसी परिचय का मोहताज नहीं, भारत की प्राचीन कलाओं को संजोने और बढ़ावा देने को अद्भुत कार्य प्राचीन कला केन्द्र पिछले 6 दशकों से निरंतर करता आ रहा है। केन्द्र के मोहाली और चंडीगढ़ काम्पलेक्स में छात्र भारतीय संगीत कलाओं की विधिवत शिक्षा प्राप्त करते हैं और केन्द्र युवा छात्रों को मंच प्रदान करके उनकी प्रतिभा को निखारने का कार्य भी सफलतापूर्वक कर रहा है । इसी कड़ी में केन्द्र की सिलसिलेवार ‘‘परंपरा’’ का आयोजन मासिक कार्यक्रम के तहत किया जाता है । आज केन्द्र की परम्परा केन्द्र के मोहाली स्थित डॉ.शोभा कौसर सभागार में इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें छात्रों ने अपने गुरूओं से प्राप्त संगीत शिक्षा का बखूब प्रदर्शन किया । कार्यक्रम का आयोजन सायं 4 बजे से किया गया । इस कार्यक्रम में विधिवत शिक्षा दे रहे गुरू प्रवेश कुमार,दविंदर सिंह और हृदयकांत के निर्देशन में छात्रों ने मंच प्रदर्शन किया । फाईन आर्ट्स के छात्रों की कुछ खूबसूरत पेंटिग्स का भी इस अवसर पर प्रदर्शन किया गया।

कार्यक्रम का आरम्भ सरस्वती वंदना से किया गया
जिसके बोल थे वंदना को स्वर समर्पित । इसके उपरांत राग भोपाली में गिटार वादन पेश किया गया और खूबसूरत गत पेश करके छात्रों ने खूब तालियां बटोरी । इसके पश्चात राग भाग्यश्री में छात्रों द्वारा बड़े ख्याल की रचना ‘‘प्रीत लागी’’ पेश की गई साथ ही छोटे ख्याल में निबद्ध रचना ‘‘कौन करत’’ प्रस्तुत की गई । इसके उपरांत तराना पेश किया गया जिसे दर्शकों ने खूब सराहा । सामूहिक रूप से गायन करते छात्रों में खूबसूरत सामंजस्य नजर आया।

इसके पश्चात एकल गिटार वादन पेश किया गया जिसमें फलेवरस ऑफ फिंगर स्टाईल गिटार पेश की । इसके उपरांत एक भजन ‘‘तू मेरी राक्खो लाज हरि’’ जोकि अहीर भैरवी में निबद्ध था पेश किया गया । इसके पश्चात एक अन्य एकल गिटार वादन जो कि भैरवी में निबद्ध था प्रस्तुत किया गया । कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए एक खूबसूरत कव्वाली जो कि पहाड़ी राग में निबद्ध थी पेश की गई इस कव्वाली के बोल थे ‘‘भर दो झोली’’। कार्यक्रम के अंत में राग भैरवी में एक शब्द ‘‘बहुत जन्म’’ पेश किया गया।

कार्यक्रम के अंत में केन्द्र की  डिप्टी  रजिस्ट्रार डॉ.समीरा   कौसर ने छात्रों एवं गुरूओं को प्रशंसा भरे शब्दों से उत्साहित किया । इस अवसर पर छात्रों को सटीर्फिकेट भी प्रदान किए गए।

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Thursday, August 11, 2022

केंद्र की 275 वी मासिक बैठक में अंजलि के कत्थक नृत्य से सजी शाम

 Thursday 12th Aug 2022 at 5:55 PM

आज भी दर्शक कार्यक्रम के समापन तक मंत्रमुगध हो कर बैठे रहे 


चंडीगढ़
: 12 अगस्त 2022: (गुरजीत बिल्ला//इनपुट-कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन)::

पत्थरों का शहर  कहे जाने वाले चंडीगढ़ को जो लोग और जो संगठन जीवंत और संवेनदशील बनाए रखते हैं उनमें प्राचीन कला केंद्र भी एक है। इस संस्थान की ओर से नियमित तौर पर आयोजन किए जाते हैं जो संगीत को समर्पित होते हैं। इन आयोजनों में शामिल होने का मतलब होता है दुनिया की भागदौड़ और तनाव से अलग हो कर स्वतः ही स्वयं से जुड़ा, प्रकृति से जुड़ना, संगीत से जुड़ना और भगवान से जुड़ना। बिना कोई मेडिसिन और नशा लिए एक खुमारी में डूब जाना। आज भी यहाँ एक विशेष आयोजन थे। 

चंडीगढ़ ही नहीं बल्कि देश की जानी मानी सांगीतिक संस्था प्राचीन कला केन्द्र पिछले 23  वर्षों से लगातार मासिक बैठकों का निरंतर आयोजन करता आ रहा है  जिसमें देशभर से ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे  विभिन्न शास्त्रीय कलाओं में पारंगत कलाकार भाग ले चुके हैं ।  इन बैठकों में वरिष्ठ कलाकारों से लेकर उभरते कलाकारों ने अपनी खूबसूरत प्रस्तुतियों से संगीत प्रेमियों का मनोरंजन किया है   और ये सिलसिला आज भी  जारी है।

आज की बैठक में दिल्ली की युवा एवं प्रतिभावान कत्थक नृत्यांगना अंजलि मुंजाल ने खूबसूरत  कत्थक नृत्य की प्रस्तुति पेश की  । अंजलि अल्पायु से ही कत्थक नृत्य सीख रही है । उन्होंने कत्थक की विधिवत शिक्षा अपने गुरु विधा लाल से प्राप्त की है  । अंजलि के नृत्य में उनका कठिन परिश्रम,रियाज़ और अभिनय अंग पर खास पकड़ उन्हें संगीत जगत में नई पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण पहलू रहा है ।

अंजलि ने  कार्यक्रम की शुरूआत श्री गणेश वंदना  से की जिस में अंजलि ने नृत्य के माध्यम से भगवन गणेश को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये  उपरांत अंजलि  ने  शुद्ध पारम्परिक कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया  जिस में तीन ताल में निबद्ध आमद , परन, तिहाई,तोड़े,टुकड़े,गत निकास,चक्र लड़ी आदि प्रस्तुत किया ।

कार्यक्रम का समापन अंजलि ने एक खूबसूरत रचना "बिजुरी चमके "  से किया जोकि मौसम के अनुसार राग मिया मल्हार में निबद्ध थी । इसके उपरांत  अंजलि ने कुछ पारम्परिक बंदिशें भी पेश की।   अंजलि ने अभिनय अंग,पैरों की चालों एवं नृत्य की खूबसूरत मुद्राओं से कार्यक्रम को चार चांद लगा दिए ।

अंजलि के साथ अमान अली  ने तबले  पर , आमिर अली ने सारंगी पर  और सुहेब हसन ने गायन  पर और सोनम यादव ने पडंत पर बखूबी  संगत की कार्यक्रम के अंत में केंद्र की रजिस्ट्रार डॉ शोभा कौसर एवं सचिव श्री सजल कौसर ने कलाकारों को सम्मानित किया। 

Saturday, June 18, 2022

सुरोताल सुसज्जित संध्या में उभरते कलाकारों ने जमाया रंग

18th June 2022 at 5:28 PM

‘‘सुरोताल सुसज्जित संध्या’’ प्राचीन कला केन्द्र की एक और उपलब्धि 


चंडीगढ़
: 18 जून 2022: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन)::

प्राचीन कला केन्द्र पिछले 70 दशकों से निरंतर संगीत कला की स्वार्थहीन सेवा अपने अनथक प्रयासों से करता आ रहा है । प्राचीन कला केन्द्र न सिर्फ जाने माने कलाकारों की कला को कला प्रेमियों तक पहुंचाता है बल्कि आने वाले कल के युवा एवं उभरते कलाकारों को मंच देने का विलक्षण कार्य भी केन्द्र निरंतर करता आ रहा है । इसी कड़ी में आज एक विशेष सांगीतिक कार्यक्रम ‘‘सुरोताल सुसज्जित संध्या’’ का आयोजन प्राचीन कला केन्द्र द्वारा किया गया जिसमें चंडीगढ़ के कई उभरते कलाकारों द्वारा खूबसूरत प्रस्तुतियां पेश की गई और इन कलाकारों ने न सिर्फ केन्द्र से बल्कि गुरू शिष्य परम्परा के तहत अपने माननीय गुरूओं से भी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं ।

आज के कार्यक्रम का आयोजन केन्द्र के एम.एल.कौसर सभागार में किया गया और इस कार्यक्रम में नन्हें पदमाकार कश्यप,उज्जवला मुरूगन,रिया चक्रवर्ती,श्रद्धा मुरलीधरन एवं सुहानी शर्मा ने अपनी कला प्रतिभा से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया ।

आज के कलाकारों में सब अपने आप में विलक्षण है । नन्हें पदमाकर कश्यप जो कि मात्र आठवीं के छात्र है और अपने पिता एवं गुरू प्रभाकर कश्यप और चाचा दिवाकर कश्यप से संगीत की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं । संगीत इनके खून में बसा है ।

दूसरी कलाकार उज्जवला मुरुगन एक उच्च स्तरीय आईएएस माता-पिता की संतान है । 11 वीं की  प्रतिभावान छात्रा उज्जवला न सिर्फ संगीत में रूचि रखती है बल्कि खेलकूद और पढ़ाई में भी उनकी गहरी रूचि है । इन्होंने संगीत की शिक्षा अपने पहले गुरू यशपाल शर्मा के अलावा उज्जवला  प्रो.हरविंदर सिंह से संगीत की बारीकियां सीख रही है ।

आज की तीसरी कलाकार सुहानी शर्मा भी आईएएस माता-पिता की संतान है जो दसवीं की छात्रा है और अपने गुरू अमित गंगानी से पिछले पांच वर्षो से तबला की शिक्षा ग्रहण कर रही है । सुहानी ने प्राचीन कला केन्द्र से भी संगीत भूषण डिप्लोमा प्राप्त किया है ।

आज की चौथी कलाकार श्रद्धा मुरलीधरन डाक्टर दंपति की विलक्षण संतान है । 22 वर्षीय युवा श्रद्धा स्वयं एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही है लेकिन संगीत में भी उनकी गहरी रूचि है । इन्होंने अपने गुरू प्रो.सौभाग्य वर्धन जी से संगीत की शिक्षा प्राप्त की है । बाबा हरिवल्लभ सम्मेलन में जूनियर कंपीटिशन में प्रथम स्थान प्राप्त कर चुकी श्रद्धा अब तक बहुत से कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुतियांे से संगीत प्रेमियों को अवगत करवा चुकी है ।

आज के कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति उपरोक्त सभी कलाकारों से थोड़ी अलग है क्यों कि हमारी पांचवी कलाकार रिया अग्रवाल विशेष रूप से सक्षम हैं क्योंकि न तो रिया ठीक से बोल पाती है न सुन पाती है, लेकिन इस कठिन परिस्थिति में भी हौसलों से भरी रिया को जब गुरू डॉ.शोभा कौसर के शिष्यत्व की छांव मिली तो उसकी तपती जिंदगी को एक नया आयाम मिला । रिया गुरू डॉ.शोभा कौसर के शिष्यत्व में कथक सीख रही है और बखूबी अपनी कला को निखार रही है ।

आज के कार्यक्रम की शुरूआत पदमाकर कश्यप के गायन से हुई । राग मालकौंस में पदमाकार ने झपताल में निबद्ध रचना ‘‘प्रथम कर ओम’’ पेश की और इसके बाद छोटे ख्याल की रचना ‘‘सियापति राम कृष्णा राधा’’ । इसके पश्चात द्रुत लय में निबद्ध ‘‘आवें नहीं देत मोहे कन्हाई’’ पेश की । कार्यक्रम के अंत में एक भजन ‘‘ऐसे ही गुुरू भावे’’ पेश करके खूब सराहना प्राप्त की।

इसके पश्चात उज्जवला मुरूगन ने मंच संभाला और राग बागेश्री में आलाप के बाद विलम्बित ख्याल की रचना ‘‘कौन गत भई’’ पेश की । उपरांत द्रुत रचना ‘‘कौन करत तोरी विनती पिहरवा’’ पेश करके खूब तालियां बटोरी । उज्जवला ने कार्यक्रम के अंत में तराना पेश किया ।

इसके पश्चात सुहानी शर्मा ने तबला वादन प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने तीन ताल में तबले की प्रस्तुति पेश की । पेशकार,कायदे,रेले,गतें इत्यादि पेश करके खूब प्रशंसा हासिल की ।

कार्यक्रम की अगली पेशकश में श्रद्धा मुरलीधरन ने राग बिहाग से सजी बड़े ख्याल की बंदिश ‘‘का से कहंू मन की व्यथा’’ जो कि चतुश ताल में निबद्ध थी पेश की इसके उपरांत छोटे ख्याल की रचना ‘‘गुण गाऊँगी वीरन पथिकवा’’ प्रस्तुत की । कार्यक्रम के अंत में उन्होंने एक भजन ‘‘मन लगो मेरा यार फकीरी में’’ प्रस्तुत की जिसे दर्शकों ने खूब सराहा ।

कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति में रिया अग्रवाल की कथक प्रस्तुति पेश की गई । इसमेें सबसे पहले रिया ने आलाप से शुरूआत करके गुरू वंदना पेश की । उपरांत धमार ताल 14 मात्रा में निबद्ध पर कथक नृत्य पेश किया । कार्यक्रम के अंत में तीन ताल से सजी कथक के कुछ पारम्परिक अंग जैसे कवित्त,तोड़े,टुकड़े,चालें इत्यादि बेहद खूबसूरती से पेश की । रिया ने अपने खूबसूरत नृत्य से इस बात की पुष्टि की कि इंसान चाहे तो दुनिया के हर असंभव काम को संभव किया जा सकता है बेशर्त हमारे पास इच्छा शक्ति हो । 

कार्यक्रम के अंत में केन्द्र की रजिस्ट्रार डॉ.शोभा कौसर,सचिव श्री सजल कौसर ने कलाकारों को मोमेंटो और सर्टिफिकेट  देकर सम्मानित किया गया ।