Thursday, September 7, 2023

राग आधारित फ़िल्मी गीतों का भी एक अलग ही ज़माना था

आज भी असली जादू राग आधारित संगीत ही जगा सकता है 


मोहाली
//चंडीगढ़: 7 सितम्बर 2023: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन डेस्क)::

कुछ गीत सुनते ही दिल में उतरते जाते हैं। उनके बोल, उनकी धुन सब कुछ तुरंत ज़ेहन में बैठता है और याद हो जाता है। उठते बैठे वही गीत इंसान कब गुनगुनाने लगता है इसका पता उसे स्वयं भी नहीं लगता। वास्तव में यह सब रागों पर आधारित संगीत की वजह से होता है। 

लाखों करोड़ों गीत फिल्मों के ज़रिए लोगों के दिलों तक पहुँच चुके हैं। जहाँ तक शदों की बात है वे तो कमाल के होते ही हैं लेकिन उनकी धुन उनके अर्थों को हज़ारों गुना बढ़ा देती है। हर गीत के लिए एक अलग धुन तैयार करना ही संगीतकार की डयूटी होती है। कई बार कई गीतों की धुन मिलती जुलती भी लगने लगती है लेकिन फिर कुछ अंतर् होता ही है। रागों पर आधारित फिल्मी गीत ध्यान से सुने जाने पर इस बात का अहसास देने लगते हैं। उन गीतों के बोल उनकी धुन के सहारे दिल में उतरने लगते हैं। गौरतलब है कि हिंदी सिनेमा में रागों पर आधारित कई बेहतरीन गीत हैं। यहां कुछ प्रमुख रागों के उदाहरण दिए गए हैं जिन पर आधारित फिल्मी गाने बने हैं। केवल बने ही नहीं बल्कि बेहद लोकप्रिय भी हुए।

राग यमन एक बहुत ही मनभावन राग है। जैसे आप अपने ही दिल से अपनी ही बात पहली बार कह रहे हों-ऐसा आभास होने लगता है। इस राग को राग कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। सत्ता और सियासत में आने वाली तबदीलियों का असर संस्कृति, संगीत और साहित्य पर भी पड़ता है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से होती है अत: इसे आश्रय राग भी कहा जाता है (जब किसी राग की उत्पत्ति उसी नाम के थाट से हो)। मुगल शासन काल के दौरान, मुसलमानों ने इस राग को राग यमन अथवा राग इमन कहना शुरु किया। लुधियाना के प्रोफेसर चमन लाल भल्ला इसका गायन भी बहुत सुंदरता से करते हैं। 

गौरतलब है कि यमन और कल्याण भले ही एक राग हों मगर यमन और कल्याण दोनों के नाम को मिला देने से एक और राग की उत्पत्ति होती है जिसे राग यमन-कल्याण कहते हैं जिसमें दोनों मध्यम का प्रयोग होता है। ख़ास बात यह कि इस राग को गंभीर प्रकृति का राग माना गया है। इस राग पर आधारित सुने जाएं तो वे गीत गंभीरता का माहौल में ले जाते हैं। इस राग में कई प्रसिद्ध फ़िल्मी गीत भी गाये गये हैं। इनमें से एक है- अपने वक्तों की प्रसिद्ध फिल्म सरस्वती चंद्र से बेहद सुरीला सा गीत-चंदन सा बदन, चंचल चितवन। इसी तरह एक और फिल्म आई थी भीगी रात-इस फिल्म का गीत था-"दिल जो न कह सका वो ही राज़े दिल...." एक और फिल्म बहुत प्रसिद्ध हुई थी-चितचोर-इसका एक गीत बेहद लोकप्रिय हुआ था "जब दीप जले आना..." एक और फिल्म आई थी- अनपढ़-  गीत भी लोगों की ज़ुबान पर काफी चढ़ा था-जिया ले गयो जी मोरा सांवरिया ....इसी तरह एक और फिल्म थी राम लखन-इसका गीत भी प्रसिद्ध हुआ था-"बड़ा दुख दीन्हा मेरे लखन ने..."उल्लेखनीय है कि राग यमन में और भी बहुत से बहुत से गीत हैं। एक गीत आपने सुना होगा-"तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं" .इसे गाया था जानेमाने  गायक किशोर कुमार साहिब ने।  फिल्म थी "गाईड"। 

इसी तरह एक और गीत राग यमन में है। "ज़िन्दगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मकाम, वो फिर नहीं आते..! इसके गायक थे जनाब मोहम्मद रफी साहिब।।यह गीत अपने साथ ही वक्त की धरा में बहा ले जाता है। इसकी फिल्म थी "आप की कसम"।

यहां एक बार फिर याद दिलाना ज़रूरी लगता है कि जब सत्ता बदलती है तो बहुत सी चीज़ों, स्थानों और जगहों के नाम भी बदल जाते हैं। कुछ इसी तरह राग यमन के मामले में भी हुआ था। इस राग का प्राचीन नाम तो  कल्याण है। वक्त बदला, सत्ता बदली, राजनीति भी बदली तो कालांतर में मुगल शासन के समय से इसे यमन कहा जाने लगा। इस राग के अवरोह में जब शुद्ध मध्यम का अल्प प्रयोग गंधार को वक्र करके किया जाता है, तब इस प्रकार दोनों मध्यम प्रयोग करने पर इसे यमन कल्याण कहते हैं। 


Friday, June 9, 2023

प्राचीन कला केन्द्र की 285वीं मासिक बैठक

  Friday 9th June 2023 at 19:43 PM

 तबला वादन और कत्थक नृत्य की खूबसूरत प्रस्तुतियां 


चंडीगढ़
: 9 जून 2023: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन डेस्क)::

उत्तर भारत में संगीत और कला की साधना को निरतर जीवंत रखने वालों में प्राचीन कला केंद्र भी एक है। इस क्षेत्र से जुड़े युवाओं और उम्र के लम्बा हिस्सा बिता चुके साधकों के लिए कुछ न कुछ करते रहना इसी संस्थान के हिस्से आया है। इस संतान की मासिक बैठक साधना की इस धरा को जीवंत रखने में बहियत सहयक होती है। हर महीने किसी नई किस जानेमाने कलाकार को इस बैठक में बुला कर सभी के रूबरू कराना इसी संस्थान के बस है। हर महीने कला प्रेमियों को संगीत और कला की दिव्य अनुभूतियों से परिचित करवाना एक कठिन लेकिन यादगारी कार्य है। 

इस बार भी आज अलौकिक से अनुभव हुए। प्राचीन कला केन्द्र द्वारा आज यहां एम.एल.कौसर सभागार में 285वीं मासिक बैठक का आयोजन किया गया । जिसमें जालंधर से आए सुरजीत सिंह द्वारा तबला  वादन और दिल्ली से आए रोहित पवार द्वारा कत्थक नृत्य की प्रस्तुति पेश की गई।

आज के कलाकार सुरजीत सिंह ने तबला वादन की शिक्षा अपने गुरू कुलविंदर सिंह से प्राप्त की। अल्पायु से ही संगीत में रूचि रखने वाले सुरजीत सिंह ने बहुत से कार्यक्रमों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करके प्रशंसा हासिल की है । विदेशों में भी सुरजीत अपनी प्रतिभा का तोड़ मनवा चुके है।

दूसरी ओर रोहित पवार ने गुरू वासवती मिश्रा के शिष्यत्व में अपनी कला को निखारा है । इसके अलावा इन्होंने अल्पायु से ही कत्थक की प्रस्तुतियां देकर दर्शकों का प्यार प्राप्त किया है । आजकल रोहित कत्थक केन्द्र दिल्ली में बतौर कत्थक कलाकार अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं । देश ही नहीं विदेशों में भी रोहित अपने कत्थक नृत्य की एकल प्रस्तुतियां पेश कर चुके हैं।

आज के कार्यक्रम की शुरूआत सुरजीत सिंह के तबला वादन से हुई जिसमें इन्होंने तीन ताल से कार्यक्रम की शुरूआत की और सबसे पहले पेशकार प्रस्तुत किया । इसके बाद रेले,कायदे,पल्टे पेश किए । साथ ही पंजाब घराने की कुछ खास बंदिशें भी पेश की । सुरजीत के सधे हुए तबला वादन में उनकी विशिष्ट शैली की झलक मिलती है । इन्होंने और भी कई पुरातन बंदिशें  पेश करके दर्शकों की तालियां बटोरी । इसके साथ हारमोनियम पर ईश्वर सिंह ने बखूबी संगत करके रंग जमाया।

दूसरी प्रस्तुति में दिल्ली से आए युवा कत्थक नर्तक रोहित पवार ने मंच संभाला । सबसे पहले भगवान शिव की स्तुति की । असाधारण गुणों के स्वामी शिव की स्तुति पेश की और इस प्रस्तुति द्वारा रोहित ने भगवान शिव को अपनी श्रद्धा के सुमन अर्पित किए । इसके उपरांत शुद्ध कत्थक नृत्य की प्रस्तुति तीन ताल में पेश की गई । जिसमें उपज,थाट,उठान,लड़ी इत्यादि पेश की गई । विलम्बित मध्य और द्रुत लय से सजी प्रस्तुतियों में रोहित ने कत्थक के विभिन्न रंग पेश करके खूब प्रशंसा बटोरी। 

कार्यक्रम के अंतिम भाग में रोहित ने भावपक्ष पर आधारित रचना केसरीया बालम पधारो हमारो देस जो कि राजस्थानी मांड पर आधारित थी पेश करके दर्शकों की खूब तालियां बटोरी । इनके साथ तबले पर जहीन खां,गायन पर सुहैब हसन,पखावज पर महावीर गंगानी और सारंगी पर गुलाम वारिस ने बखूबी संगत की।

कार्यक्रम के अंत में केन्द्र की रजिस्ट्रार डॉ.शोभा कौसर,सचिव श्री सजल कौसर ने कलाकारों को मोमेंटो देकर सम्मानित किया।

Wednesday, April 26, 2023

प्राचीन कला केंद्र कलाकारों की आर्थिक मज़बूती के लिए भी गंभीर

डांस और कला के  क्षेत्र  में कैरियर के रास्ते भी बहुत अच्छे हैं 


चंडीगढ़
: 26 अप्रैल 2023: (कार्तिका सिंह//रेक्टर कथूरिया//संगीत स्क्रीन)::

कला के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग समाज और संसार उत्कृष्ट स्थिति को दर्शाने वालों में शामिल होते हैं। समाज के विकास और खिलावट का पता कला क्षेत्र से जुड़े लोग ही बताते हैं। पूरी पूरी उम्र तक चलनेवाली साधना जब कई बार विरासत में मिलती है तो अहसास होता है की यह साधना केवल एक उम्र की नहीं बल्कि जन्मों जन्मों की साधना है। इसके बावजूद जब कभी कभी समाज के विभिन्न अवसरों पर उनका आमना सामना ज़िंदगी के कड़े इम्तिहानों से होता है तो उनसे अक्सर पूछा जाता है कि कला तो हुई, डांस भी हुआ, संगीत भी हुआ लेकिन करते क्या हो? इस सवाल को पूछने का मतलब होता है पैसा कहां से कमाते हो? रोज़ी रोटी कहां से चलती है? आसमान को छूती महंगाई का ज़माना है इसलिए आजकल दाल रोटी चलना भी सहज नहीं रहा। कला के क्षेत्र में तो स्थिति और भी संवेदनशील है। कला के  कुछ अलग किस्म के अपने खर्चे भी होते हैं। वस्त्रों से ले कर साज़ों तक। 

प्राचीन कला केंद्र ने इस स्थिति को एक चुनौती की तरह लिया है और कला के क्षेत्र में जुड़े लोगों को ऐसे सवालों का सामना करते समय यह कहने के सक्षम बनाया है कि और कुछ का क्या मतलब? हम और कुछ क्यूं करें? हमें अपनी कला की साधना सम्मानजनक जीवन जीने के लिए बहुत अच्छी आमदनी भी देती है। हमें जीवनयापन के लिए कुछ और करने की ज़रूरत ही नहीं। 

आज 26 अप्रैल 2023 की दोपहर को जब प्राचीन कला केंद्र के चंडीगढ़ कार्यालय में पत्रकार वार्ता चल रही थी तो इस संस्थान की संचालन और प्रबंधन समिति से जुडी हुई डाक्टर  समीरा कौसर ने स्वयं ही इस मुद्दे को उठाया। गौरतलब है कि इस मुद्दे पर बात करने से अक्सर कलाकार लोग घबरा जाते हैं या शरमा जाते हैं क्यूंकि शराब की पार्टियों और दिखावे पर बेशुमार खर्चे करने वाले हमारे समाज में अभी भी कला और कलाकारों के लिए खुले दिल से खर्च करने का ट्रेंड नहीं बन सका। उन्हें अपनी टीम के सदस्यों को कुछ शुल्क देने और आनेजाने का खर्चा निकलने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं। आर्थिक तंगियों तुर्शियों को दूर करके की पहल करते हुए अब प्राचीन कला केंद्र इस दिशा में विशेष योजनाएं ले कर अग्रसर है। 

दिलचस्प बात यह है कि प्रचीन कला केंद्र केवल चंडीगढ़ में ही नहीं बल्कि देश और दुनिया के बहुत से हिस्सों में सक्रिय है। इसके सर्टिफिकेट देश और दुनिया भर में मान्यता प्राप्त हैं। शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य की विद्या के साथ ही एक शुरुआत, उस अर्जित विद्या से रोज़गार की।  कला के क्षेत्र में रोज़गार के नए अवसर पैदा करके कला केंद्र एक नई पहल की है।  भारतीय शास्त्रीय कला तथा संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए केंद्र द्वारा एक नए कदम का आगाज़ किया है, जिसमें राजधानी चंडीगढ़ तथा आसपास के प्रतिष्ठित स्कूलों के साथ एक संयुक्त उधम यानि कि कोलैब्रेशन की जाएगी। जिस में स्कूली बच्चों को अपने ऐकेडेमिक कोर्स के साथ शास्त्रीय संगीत, नृत्य एवं कोमल कला के कोर्सेज करवाए जायेंगे। कथक, हिंदुस्तानी संगीत और पेंटिंग की क्लासेज स्कूल ख़त्म होने के बाद स्कूल परिसर में ही इच्छुक छात्रों के लिए करवाई जाएंगी। जिनसे छात्रों को सर्वश्रेठ शिक्षकों से सीखने के साथ ही उनके कौशल व ज्ञान को विकसित करने, तथा उनके समग्र शैक्षिक अनुभव को समृद्ध करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करेगी। हमारी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार के लिए युवा पीड़ी को कलात्मिक गतिविधियों से जोड़ना अपने आप में एक सराहनीय कदम है।  

कला में पारंगत करने वाली शिक्षा देने के साथ कैरियर और रोज़गार के अवसर भी आवश्यक हैं। इस बात को भी गंभीतरता से पहचाना है प्राचीन कला केंद्र ने। इस के साथ शास्त्रीय कलाओं में मास्टर्स एवं पी.एच.डी  तक की डिग्री प्राप्त कर चुके टीचर्स के लिए भी ये एक अहम अवसर साबित होगा। इन कलाओं में विद्या प्राप्ति के बाद रोज़गार के अवसर बहुत कम होते हैं, ऐसे में कला केंद्र की तरफ़ से ऐसी पहल एक नया आयाम साबित करेगी।  जिस को पूर्ण करने के लिए चंडीगढ़ के बनयान ट्री स्कूल के डायरेक्टर कर्नल जी. एस. चड्डा तथा कुरुक्षेत्र के विजडम वर्ल्ड स्कूल के डायरेक्टर श्री विनोद रावल एवं श्रीमती अनीता रावल आगे आये हैं।  इन दोनों स्कूलों से इस कदम की शुरुआत होगी। इस पूरे प्रोजेक्ट के मैनेजर श्री पार्थ कौसर होंगे।  ग्रेड 1 से लेकर 12 कक्षा तक कोई भी विद्यार्थी इसमें भाग ले सकता है।  बनयान ट्री स्कूल द्वारा ये कोर्स पूरी तरह से फ्री होगा, अर्थात छात्रों को संगीत व नृत्य की शिक्षा के लिए कोई भी एक्स्ट्रा चार्ज नहीं देना होगा।  वहीँ विजडम वर्ल्ड स्कूल द्वारा छात्रों के माता-पिता को इन् कोर्सेज में अपने बच्चों के साथ भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा। 

हर सवाल का पूरी बारीकी से जवाब देने के साथ ही डॉ समीरा कौसर ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि, इंटरनेट अथवा यूट्यूब जैसे ऑनलाइन प्लेटफार्म से नृत्य एवं संगीत सीखने वाले छात्रों को भी एहसास होगा कि, पूर्ण तौर पर प्रतिष्ठित गुरु से सीखने का अनुभव कैसा होता है? गुरु माँ  डॉ शोभा कौसर के आशीर्वाद सहित उनके अधीन शिक्षा ग्रहण कर चुके केंद्र के छात्रों एक गुरु के रूप में पढ़ाने का अवसर भी मिलेगा।  इसके साथ ही ये सभी कोर्स शासकीय निकायों द्वारा मान्यता प्राप्त प्रमाणपत्रों द्वारा समर्थित है।  ये सर्टिफिकेट उनके आगामी जीवन में भी एक मूल्यवान प्रमाण पत्र की तरह एक अतिरिक्त निवेश की भांति  होगा जिस से छात्र कला के क्षेत्र में  कुछ नया सीख पाने में सक्षम होंगे।

अंत में एक बात और भी यहाँ ज़रूरी लगती है। जुर्म को कंट्रोल करने और जुर्म को मिटाने के लिए जितने खर्चे सरकारें करती हैं और जितने झंझट समाज के विभिन्न वर्ग करते हैं उन सभी प्रयासों को खर्चों का दो चार परसेंट भी युवा वर्ग को जुर्म की दुनिया का आकर्षण से हटा कर कला के ज़रिए नवनिर्माण की तरफ मोड़ सकता है। इससे पहले कि कोई समाज दुश्मन हमारे युवाओं के हाथों में बंदूक पकड़ा जाए उससे पहले ही इन युवाओं के सामने कला के क्षेत्र में अच्छी आमदनी वाले रास्ते बनाना बहुत ही फायदेमंद रहेगा। प्राचीन कला केंद्र युवा वर्ग को सपने दिखाने के साथ साथ इन सपनों को साकार करने के लिए भी बहुत कुछ करता है। अगर समाज और सत्ता भी इन प्रयसों में इस संस्थान का साथ दें तो सफलता हैरानकुन होगी। 

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Saturday, March 11, 2023

मोनिका शाह के शास्त्रीय गायन से सजी शाम

 Saturday 11th March 2023 at 7:08 PM

मंच से बिखरा राग जैजावंती का जादू 


चंडीगढ़
: 11 मार्च 2023: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन डेस्क)::

प्राचीन कलाकेंद्र एक ऐसा संस्थान है जिस ने आज के युग में भी संगीत की शुद्धता और नियमों को ध्यान में रख कर न केवळ स्वयं साधना की है बल्कि लाखों अन्य साधकों को भी।  आज भी यहां विशेष आयोजन था। आज जानीमानी शास्त्रीय गायिका मोनिका शाह।  

गीत तो और भी बहुत से होंगें लेकिन इस समय बात करते है इतिहास और फिल्मों की। सन 1960 में आई एक ऐसी ही जानीमानी फिल्म मुगले आज़म की याद लोगों के ज़ेहन मेंअभी तक ताज़ा है। उसकी फोटोग्राफी भी बेहद महंगी थी और उसके सभी गीत भी लोकप्रिय हुए थे। इन गीतों ने कई नए रेकार्ड बनाए और एक इतिहास रचा। लोगों को फिल्म का नाम भी याद रहता है और गीतों के मुखड़े भी लेकिन इन गीतों की धुनों को किस राग के आधार पर तैयार किया गया था इसका ख्याल मन में काम ही उठता है। इस आधार की इस राग की चर्चा होती है पाचन कलाकेंद्र के आयोजनों में। 

आज भी राग का विचार शिद्द्त से उभरा प्राचीन कला केंद्र का आज का आयोजन देख कर। आज प्राचीन कला केंद्र के प्रांगण में राग जैजावंती की खूबसूरती बुलंदी के साथ एक बार फिर  सामने आई। शायद बहुत कम लोग जानते होंगें कि मुगलेआज़म फिल्म की यह प्रसिद्ध क़वाली इसी राग पर आधारित थी।  इसके बोल और अंदाज़ एक नया इतिहास रच गए। बहुत सी फिल्मों के जादूभरे गीतों का आधार रहा राग जैजावंती। जिस क़्वाली  की हम यहां चर्चा कर रहे हैं उसके बोल थे: 

यह दिल की लगी कम क्या होगी!

यह इश्क़ भला कम क्या होगा!

जब रात है ऐसी मतवाली! 

फिर सुबह का आलम क्या होगा!

गीत लिखा था शकील बदायुनी साहिब ने और इसे संगीत से सजाया था जनाब नौशाद साहिब ने। राग जैजावंती पर आधारित इस गीत की धुन ने बह श्रोताओं  में एक विशेष स्थान बनाया। ताल था दादरा। 

इस गीत को अपनी आवाज़ दे कर अमरता प्रदान की सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर जी ने। 

आज इस राग पर विशेष कार्यक्रम सुन पाना सचमुच किसी उपलब्धि से कम नहीं था। प्राचीन कला केन्द्र द्वारा आयोजित की जाने वाली मासिक बैठकों की श्रृंखला में आज केन्द्र की 282 वीं मासिक बैठक का आयोजन केन्द्र के एम.एल.कौसर सभागार में किया गया जिसमें अहमदाबाद से आई शास्त्रीय गायिका डा. मोनिका शाह द्वारा एक मधुर शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति पेश की गई। मोनिका शाह पद्म विभूषण ठुमरी क्वीन के नाम से विख्यात गिरिजा देवी जी की शिष्या हैं । इन्होंनें 1500 से ज्यादा कार्यक्रमों में अपनी खूबसूरत प्रस्तुतियों से संगीत प्रेमियों का दिल जीता है । इन्होंनें देश ही नहीं विदेशों में अपनी कला का बखूबी प्रदर्शन किया है। इन्होंनें आराधना संगीत अकादमी की स्थापना की जिसमें लगभग 200 विद्यार्थी संगीत की शिक्षा ले रहे हैं ।

 आज के कार्यक्रम की शुरूआत राग जैजैवंती से की गई जिसमें पारम्परिक आलाप के बाद इन्होंनें बड़े ख्याल की रचना ‘‘लड़ा में सजनी’’ जो कि विलम्बित एक ताल में निबद्ध थी पेश की । इसके उपरांत मोनिका ने मध्य लय तीन ताल में निबद्ध रचना ‘‘विनती की करीए बात जो’’ पेश की। इसके उपरांत राग मिश्र खमाज ताल में निबद्ध ठुमरी  जिसके बोल थे ‘‘जग पड़ी मैं तो पिया के जगाए’’ प्रस्तुत करके खूब तालियां बटोरी ।

कार्यक्रम के अंत में केन्द्र के सचिव श्री सजल कौसर ने कलाकारों को सम्मानित किया ।हुत से लोग जो केवल गीत सुनते हैं उनके लिए तो आज भी यह गीत विशेष हैं। जो लोग संगीत की गहरी समझ रखते हुए इसके राग आधारित पहलुओं को भी जानना चाहते हैं। इस दिशा में हमरे विशेषज्ञों ने जो बताया उसका सारांश इस प्रकार है:

यहाँ इस बात की चर्चा करते हुए उल्लेखनीय है कि आरोह में पंचम के साथ शुद्ध और धैवत के साथ कोमल नि प्रयोग किया जाता है, जैसे म प नि सां, ध नि रे। किन्तु अवरोह में कोमल निषाद प्रयोग किया जाता है। इस राग की प्रकृति गंभीर है तथा चलन तीनो सप्तकों में समान रूप से होती है एवं इसमें छोटा ख्याल, बडा ख्याल, ध्रुपद, धमार सभी शोभा देते है।

गौरतलब है कि इस राग में राग अल्हैया, राग छाया व राग देस का अंग दूध-पानी कि भांति मिला हुआ है। यथा - राग अल्हैया का अंग- ग प ध नि१ ; ग नि१ ; नि१ ध प ध ग म ग रे ; रे ग१ रे सा; राग छाया का अंग- रे रे ग रे; रे ग म प ; म ग ; म ग रे; ,प रे रे ग१ रे सा, राग देस का अंग- रे रे; म प नि; नि सा'; नि सा' रे' नि१ ध; प ध म ग ; म ग रे; ,नि सा ,ध ,नि१ रे।

बहुत से गुणी कलाकार इस मामले पूरी तरह से पारंगत हैं। इस तरह के गायन की कमांड  रखने वाले इस राग को राग बागेश्री के आरोह के द्वारा भी गाते हैं परंतु देस अंग का आरोह यथा रे म प नि सा' वाला रूप ही प्रचार में अधिक है। इस राग का स्वर विस्तार तीनों सप्तकों में किया जाता है।

इस तरह कुछ और गीत भी इसी राग पर आधारित रहे। इन्हीं में से एक गीत था;

ज़िंदगी आज मेरे नाम से शर्माती है: यह गीत फिल्म "सन ऑफ इंडिया" का था जो सन 1962 में आई थी। ताल दादरा रहा। इस गीत को आवाज़ दी थी मोहम्मद रफ़ी साहिब ने और  से सजाया था जनाब नौशाद साहिब ने। 

निकट भविष्य में भी हम आपके रूबरू इसी तरह की जानकारी लाते रहेंगे। आप भी संगीत स्क्रीन से जुड़िए। विवरण यहां क्लिक कर के देख सकते हैं। 

Wednesday, January 4, 2023

शीत लहर के बावजूद आईसीसीआर और प्राचीन कला केंद्र की एक नई पहल

Wednesday 4th January 2023 at  08:01 PM

पंजाबी लोक गीतों और लोक नृत्यों की एक रंगीन शाम का आयोजन

आईसीसीआर की हॉरिजोन  सीरीज के तहत इस संगीत संध्या का आयोजन किया


चंडीगढ़
//मोहाली: 4 जनवरी 2022: (कार्तिका सिंह//संगीत स्क्रीन डेस्क)::

कलियुग के इस दौर में जब शीत लहर के मुकाबले का बहाना बना कर नशे के दौर चलते हैं और इस तरह के बहुत से दुसरे आयोजन भी होते हैं उस समय भारतीय संगीत कला को समर्पित दो प्रतिष्ठित संस्कृतिक संस्थाएं अभी भी स्वस्थ मनोरंजन और सच्ची कला की साधना के पथ पर अग्रसर हैं। आईसीसीआर और प्राचीन  कला केंद्र के संयुक्त तत्वाधान में  आज इसी बात को साबित करता एक और आयोजन हुआ। यह आयोजन पंजाबी लोकगीतों और लोक नृत्य पर आधारित था। इस रंगारंग संध्या का आयोजन प्राचीन कला केंद्र के डॉ शोभा कौसर सभागार, सेक्टर-71, मोहाली में शाम पांच बजे से किया गया। देखते ही देखते माहौल पूरी तरह से कला के रंग में रंग गया। पंजाब के गीत और पंजाबी भगंडा के बार फिर छाए रहे। 

इस कार्यक्रम में पंजाब के प्रसिद्ध कलाकार आत्मजीत सिंह की टीम ने उनके मार्गदर्शन में पंजाबी लोक संगीत के सभी रंग जैसे गिद्दा भांगड़ा, झूमर, गीत आदि प्रस्तुत किए। हर आइटम कमाल की रही। दर्शकों और श्रोताओं को लुभाते हुए, झूमने के मूड में लाती हुई हुए पाँव को थिरकन का अहसास दिलाते हुए यह सही आइटमें बहुत ही सफलता से मंच पर मंचित हुईं। 

एस ए एस नगर के डिप्टी कमिश्नर श्री अमित तलवार आईएएस ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की और सीनियर सिटीजन एसोसिएशन चैप्टर 3 मोहाली के अध्यक्ष श्री प्रिंसिपल चौधरी विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस मौके पर केंद्र की रजिस्ट्रार डॉ. शोभा कौसर, सचिव सजल कौसर और आईसीसीआर के क्षेत्रीय सलाहकार प्रो. हरविंदर सिंह भी मौजूद थे। 


कार्यक्रम की शुरुआत एक भक्ति गीत 'शुकर दाता तेरा शुक्र दाता'
से हुई, इसके बाद एक लोक आर्केस्ट्रा का प्रदर्शन किया गया, जिसमें सभी लोक वाद्यों की भूमिका और जीवन से दर्शकों को परिचित कराया गया, इसके बाद लुड्डी  नामक एक पंजाबी लोक नृत्य का मंचन किया गया जिसका  दर्शकों ने खूब आनंद लिया। इसके उपरांत लोक गीत लम्बी धौन कसीदा कड़दी पेश किया गया।  इसके बाद 50 प्लस युवकों द्वारा  झूमर प्रस्तुत किया गया , जिसे दर्शकों की खूब वाहवाही भी मिली। यह शानदार आइटम सचमुच जानदार भी थी। दमदार ज़िंदगी जीने की प्रेरणा देती हुई आइटम पंजाब के जज़्बे और जोश को भी ब्यान करती थी। 

कार्यक्रम के अगले भाग में हमेशा से पंजाबियों का पसंदीदा लोकगीत मिर्ज़ा प्रस्तुत किया गया, जिसके बाद इस कार्यक्रम में लड़कियों के गिद्धों ने अलग-अलग रंग बिखेरे जिस से दर्शक भी झूम उठे। 

इसके बाद लोकप्रिय पंजाबी गीत तूड़ी तंद  सौन हाड़ी  वेच वटके की प्रस्तुति दी गई और  इस गीत ने दर्शकों  को भी झूमने पर मजबूर कर दिया। कार्यक्रम का अंत भांगड़ा के बिना अधूरा है इसलिएज़ोरदार भांगड़ा के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। दर्शकों ने इस रंग बिरंगी शाम का खूब लुत्फ उठाया।