Wednesday, December 22, 2021

फिल्म ममता के गीत आज भी जादू जगाते हैं

आधुनिक युग के दर्द राग आधारित इन गीतों में आज भी झलकते हैं 


मोहाली//लुधियाना: 22 दिसंबर 2021: (रेक्टर कथूरिया//संगीत स्क्रीन डेस्क):

जब फिल्म "ममता"आई थी सन 1966 में। उस वक्त मेरी उम्र थी शायद आठ वर्ष। उन दिनों फिल्म रिलीज़ होने से पहले ही गीत मार्कीट में आ जाया करते थे। सो इस फिल्म के गीत भी लोगों के दिलों में आ गए। रेडिओ का ज़माना था। गीत तो बहुत ही थोड़े से समय में ही घर घर पहुंच जाते थे। रेडियो श्रीलंका अर्थात रेडियो सीलोन का तो कोई जवाब ही नहीं था। फिल्म की जहनि आज के दौर भी प्रासंगिक है। किस तरह आर्थिक मजबूरियां प्रेम के महल को तबाह कर देती हैं। किस तरह साफ़ सुथरे लोगों को बुराई की तरफ आना पड़ता है। फिल्म की कहानी बहुत कुछ दिखाती है। बाणभट्ट अर्थात निहार रंजन गुप्ता की कहानी को चार चाँद लगा दिए असित सेन साहिब के निर्देशन ने। आज इन विचारों की फ़िल्में फिर से बननी ज़रूरी हो गई हैं। आम इंसान की जंग को बढ़ावा देती हैं इस तरह की कहानियां जिनमें ज़िंदगी की हकीकत भी होती हो। इस फिल्म ने शायद इसी लिए भारत और अन्य देशों के साथ साथ उस ज़माने में सोवियत संघ में भी ज़बरदस्त बिज़नेस किया था। आर्थिक शोषण, आर्थिक मजबूरियां और वर्ग संघर्ष सभी को उजागर करना फिर से आवश्यक हो गया है।  

आकाशवाणी से फ़िल्मी गीतों का प्रसारण विविध भारती से अक्टूबर 1957 से शुरू हुआ था जिसे लोकप्रिय होते होते भी समझ लगा। तब तक रेडियो सीलोन लोगों के दिलों की धड़कन बन चुका था। रेडियो सीलोन हर घर के सभी सदस्य सुना करते थे। 

रेडियो की दुनिया के उस क्रन्तिकारी दौर के ऐसे माहौल में रिलीज़ हुई फिल्म "ममता" जिसके सभी गीत लोकप्रियता की शिखरें छू गए। चूँकि "ममता" हिन्दी भाषा की फिल्म थी इसलिए हिंदी भाषी दर्शकों पर इसका जादू भी खूब चला। इसके मुख्य कलाकार थे सुचित्रा सेन अशोक कुमार और धर्मेन्द्र। गौरतलब है कि सुचित्रा सेन की यह तीसरी हिन्दी फ़िल्म थी। इस फ़िल्म का निर्देशन बंगाली फ़िल्मों के प्रसिद्ध निर्देशक असित सेन ने किया है। इसी फिल्म का एक हिट गीत था जो दिल को छूता  है और बहुत ही पसंद किया गया था--रहें न रहें हम--इस गीत को लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी साहिब ने और संगीत से सजाया था रौशन साहिब ने। यह गीत राग पहाड़ी पर आधारित है। आवाज़ दी थी-सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने। इसी गीत को दोबारा भी उपयोग किया गया है। दोगाने के रूप में भी इसे काफी पसंद किया गया। दोगाने में सुमन कल्याणपुर और मोहम्मद रफ़ी साहिब कीआवाज़ें काफी जची हैं। 

एक अन्य गीत है इसी फिल्म से-इन बहारों में अकेले न फिरो राह में काली घटा रोक न ले। 

इस गीत को आवाज़ें दी हैं-आशा भौंसले और मोहम्मद रफ़ि साहिब ने। मजरूह सुल्तानपुरी साहिब के लिखे इस गीत को भी संगीत दिया है रौशन साहिब ने। इसी तरह एक और गीत इसी फिल्म से है--

रहते थे कभी जिनके दिल में हम जान से भी प्यारों की तरह। बैठे हैं उन्हीं के कूचे में आज हम तरह!

इस गीत में आवाज़ है लता मंगेशकर साहिबा की।  मजरूह साहिब के ख्यालों की बुलंदी को संगीत से चार चांद लगाए हैं-रौशन साहिब के संगीत ने। 

इसी फिल्म का एक गीत शुरू होता है बहुत ही गज़ब की शायरी के साथ। मुजरा आधारित गीतों में अक्सर ही बहुत तड़प भरी बातें होती हैं। यह गीत भी इसी तरह शुरू शुरू होता है-

हमने उनके सामने

पहले तो खंजर रख दिया!

हां फिर कलेजा रख दिया;

दिल रख दिया; सर रख दिया और कहा!

हो---चाहे तो मोरा जिया ले ले--सावरिया

चाहे तो मोरा जिया ले ले

इस गज़ब की शायरी के बाद शुरू होता है गीत-चाहे तो मेरा जिया ले ले--इसमें संगीत के जादू की इंतहा है। संगीत का यही जादू  शिखर तक जाता है इसी फिल्म के गीत विकल मोरा मनवा-----के गायन में। विकल मोरा मनवा राग पीलू पर आधारित है। 

लेकिन आज की इस पोस्ट में हम बात कर रहे हैं इसी फिल्म के एक खास गीत की। यूं तो इस फिल्म के सभी गीत खास हैं लेकिन जिस गीत की बात हम कर  रहे हैं  वह गीत प्यार को दिल में छुपाने की बात इस तरह करता है जैसे मंदिर में लौ दिए की। राग कल्याण पर आधारित इस गीत के शब्दों की ज़रा गहराई देखिए--ख्यालों की उड़ान  देखिए--इस में पवित्रता की अभिव्यक्ति देखिए--

छुपा लो यूं दिल में प्यार मेरा 

कि जैसे मंदिर में लौ दिये की

इसमें प्रेम की विनम्रता, प्रेम की पावनता और प्रेम का समर्पण  झलकते हैं। चरणों का फूल होने की बात--चरणों में रहने की कामना---फूल की तरह नाज़ुकता.. सिर झुका कर अहंकारहीनता की बात फिर मंदिर में दिए की लौ जैसी पावनता भी 

तुम अपने चरणों में रख लो मुझको

तुम्हारे चरणों का फूल हूँ मैं

मैं सर झुकाए खड़ी हूँ प्रियतम  - २

के जैसे मंदिर में लौ दिये की

इसके बाद आती है बेवफाई को स्वीकार करने की बात---बिना प्रेम के रहने का गुनाह की स्वीकृति--शब्द बहुत ज़ोरदार हैं--यह पाप मैंने किया है अब तक--और साथ ही आश्वासन भी कि तेरे बिना रह कर भी तुम्हारे बिना कुछ और नहीं सोचा--मगर है मन में छवि तुम्हारी---और यह छवि भी पूरी तरह पवित्र रही है--पूजा की तरह रही है--कि जैसे मंदिर में लौ दिए की। 

ये सच है जीना था पाप तुम बिन

ये पाप मैने किया है अब तक

मगर है मन में छवि तुम्हारी - २

के जैसे मंदिर में लौ दिये की

साथ ही चेतावनी भरा निवेदन भी है कि बस अब और दूरी नहीं--और सहना मुश्किल है अब--देखिए शब्दों की गहराई--

फिर आग बिरहा की मत लगाना

के जलके मैं राख हो चुकी हूँ

ये राख माथे पे मैने रख ली - २

के जैसे मंदिर में लौ दिये की

यह गीत राग कल्याण पर आधारित है। इस की धुन में उतराव चढ़ाव और ठहराव कमाल के हैं। इस तरह लगता है कि शब्दों के साथ स्वयं धुन भी बोल रही हो--

यह फिल्म बॉक्स आफिस पर भी पूरी तरह सफल रही थी। इस शानदार साफसुथरी फिल्म ने घरेलू भारतीय बॉक्स ऑफिस पर भी बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया। यह भारत में साल की 15 वीं सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म साबित हुई यह बहुत बड़ी बात है। करीब  12.12 मिलियन ($ 1.9 मिलियन)। यह भारत में बेचे गए लगभग 7.2 मिलियन टिकटों के अनुमानित फुटफॉल के बराबर था।

फिल्म विदेशी ब्लॉकबस्टर में सोवियत संघ, 1969 में 52.1 मिलियन टिकटों की बिक्री हुई।  यह सोवियत संघ में छठी सबसे अधिक कमाई करने वाली भारतीय फिल्म रही। उस यमन की बहुत बड़ी उपलब्धि रही यह। यह कमाई भी अनुमानित 13 मिलियन रूबल या (14.4 मिलियन डालर , या 108 मिलियन रुपयों ) के बराबर था।

संयुक्त, फिल्म ने दुनिया भर में अनुमानित million 120 मिलियन रुपयों  (16.3 मिलियन डालर ) की कमाई की थी जो उस समय भी बहुत बड़ी कमाई थी। फुटफॉल के मामले में इस फिल्म ने दुनिया भर में अनुमानित 59.3 मिलियन टिकट बेचे। इसकी लोकप्रियता का अनुमान इन टिकटों की बिक्री से ही लग सकता है। 

सम्मान के मामले में भी इस फिल्म ने नाम कमाया। इसका नामांकन फिल्मफेयर के लिए नामांकन सर्वश्रेष्ठ फिल्म के तौर पर भी हुआ। फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए नामांकन-असित सेन साहिब का भी रहा। फिल्मफेयर नामांकन सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के तौर पर सुचित्रा सेन का रहा। फिल्मफेयर नामांकन के लिए सर्वश्रेष्ठ कहानी के लिए निहार रंजन गुप्ता का नाम भी रहा। वही निहार रंजन जिन्हें ज़्यादातर लोग बाणभट्ट के नाम से जानते हैं। बंगाल की पृष्ठभूमि में जन्म भी, लालनपालन भी और कोलकाता ने इन्दगी के बहुत से रंग भी दिखाए। मेडिकल क्षेत्र से भी जुड़े रहे और सेना से भी इस तरह बहु आयामी व्यक्तित्त्व विकसित हुआ जिस में बहुत से रंग रहे। सफल कहानी लिख पाने का राज़ शायद यह भी है। उन्होंने बहुत से अच्छे नावल भी लिखे। विशेष प्रस्तुति -रेक्टर कथूरिया

कुछ संगीत विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर विशेष प्रस्तुति

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