Friday: 3rd September 2021 at 3:07 pm
हमारी अंतरात्मा की खुराक है "पंजाबी संस्कृति" और इसमें हथियारों के लिए कोई स्थान नहीं
पंजाबी युगल गीत "वजदी ए ताड़ी" का औपचारिक विमोचन पांच को
मोहाली: 3 सितंबर 2021: (गुरजीत बिल्ला//पंजाब स्क्रीन//संगीत स्क्रीन)::
हथियारों की बातें अब तक बहुत हुई। इस तरह की बातों का चलन पिछले कुछ दशकों में बहुत तेज़ी से बढ़ा भी था। परिणाम यह हुआ कि पंजाब ने बहुत ही नाज़ुक दिन भी देखे। बहुत खून बहा इस धरती पर। रंगीन चरखे का संगीत तो विलुप्त ही हो गया था। तीज के मेले भी बंद जैसे ही हो गए थे। पंजाब का नाम केवल हथियारों के साथ जुड़ता चला गया। इसी बहाने पंजाब को बदनाम भी बुरी तरह से किया गया और पंजाब का खून भी बहुत बहा। बहुत से घरों के चिराग हमेशां के लिए बुझ गए। बहुत मुश्किलों से शांति लौटी जो कि अभी भी आशंकित सी है। अभी भी खतरे मंडरा रहे हैं। इसी बीच कुछ लोगों ने कोशिश की कि वह अमन-अमान का माहौल वापिस लौट सके। इसकी ज़रूरत जब शिद्दत से महसूस की गई तो हथियारों का विरोध भी शुरू हुआ। इस तरह का स्वर एक बार फिर सुनाई दिया मोहाली प्रेस क्लब में हुई एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान।
पंजाबी सांस्कृतिक विरासत को जो लोग संभाल कर बैठने का दावा कर रहे हैं उनमें एक पाल सिंह समायों भी हैं। करीब ढाई तीन दशक से सक्रिय होने का दावा है उनका। उन्होंने अपनी संस्कृति और विरासत से टूट रही युवा पीढ़ी को पंजाबी लोक नाच, गिद्दे, झूमर इत्यादि से जोड़ कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी नाम भी कमाया है। इस तरह साथ साथ पंजाबी गायन में अपना अलग स्थान भी बनाया है। जानीमानी गायका गुरलेज़ अख्तर के साथ उनकी जोड़ी हिट भी बहुत हुई। आज इस जोड़ी ने अपने गीत "वजदी ए ताड़ी" का पोस्टर भी रिलीज़ किया। इस गीत को लिखा है सुखपाल औजला ने और संगीत तैयार किया है पाल सिद्धू ने। वीडियो डायरेक्शन में कैमरे से हुए फिल्मांकन को चार चाँद लगाए हैं स्टालिनवीर ने। यह गीत अमेरिका की म्युज़िक कम्पनी टोटल एंटरटेनमेंट के प्रमुख अवतार लाख की तरफ से रिलीज़ किया गया।
इस पत्रकार सम्मेलन में समायों ने कहा,"यह हमारे पंजाबी कल्चर की त्रासदी है की अब हमारे गीतों में तुम्बी की जगह हथियारों और बंदूकों ने ले ली है। बार बार एक ही चीज़ को दिखाए जाने का परिणाम यह हुआ कि युवा पीढ़ी उसी तरफ आकर्षित होने लगी जो की पूरी तरह गलत है। हमारा कल्चर अब गाँवों में से भी खत्म होता जा रहा है। लोक बोलियां, भंगड़ा और गिद्दा इत्यादि का सहारा ले कर ही इसे फिर से गाँवों में पुनर्जीवित किया जा सकता है। उन्होंने कहा की हमारी टीम इसी मकसद के लिए 70 तीज से सबंधित करवाए हैं। गांवों के युवाओं, बच्चों और बज़ुर्गों ने इसे बेहद सराहा। महिलाओं ने भी इसकी तारीफ़ की।
पाल सिंह समायों ने यह भी कहा कि 2011 में उनकी पुस्तक गिद्द्या पिंड वड़ वे। इसके बाद गुर्लेज अख्तर के साथ अपना गीत जोर जट्ट रिलीज़ किया। इसके साथ ही उन्होंने मीडिया को "महिंदी वाले हथां नाल वजदी ए ताड़ी" भी गा कर सुनाया। उन्होंने कहा कि जानीमानी कलाकार डाक्टर प्रभशरण कौर ने भी इस गीत की बहुत तारीफ़ की है।
इस अवसर पर वीडियो डा. डायरेक्टर स्टालिनवीर ने भी इस गीत के फिल्मांकन और सम्पादन के दौरान हुए अनुभव सुनाए। इसे बनाने के लिए गाँवों के कच्चे घरों में विशेष तौर पर शूटिंग की गई। उन्होंने यह एक घर परिवार में बैठ कर देखा जा सकने वाला गीत है। साथ ही यह गीत विदेशी संस्कृति और फैशन से भी दूर है। टीम के दुसरे सदस्य भी इस अवसर पर मौजूद रहे।
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