Thursday, May 15, 2014

संगीत की दुनिया: उत्‍तर केरल में पंचवाद्यम और पूरम

16-अप्रैल-2014 15:59 IST
विशेष लेख//क्षेत्रीय झलक                                             --*डॉ. के. परमेश्‍वरन
इस तस्वीर में कलाकार पूरी गति से पंचवाद्यम बजाते हुए देखे जा सकते हैं
अप्रैल और मई महीने में जब तापमान बढ़ जाता है और ग्रामीण क्षेत्र में तेज धूप छाई रहती है तब उत्‍तर केरल के मालाबार क्षेत्र में गांव और कस्‍बे विभिन्न वाद्यवृदों की आवाज से गूंज उठते हैं। ये ध्‍वनि होती है रंगीन और संगीतमय ‘’पूरम त्‍यौहार’’ के मौके पर बजाए जाने वाले वाद्यवृदों की, जो इस अवसर पर खासतौर से सुनाई पड़ते हैं।  
     स्‍थानीय मंदिर में पूरम त्‍यौहार मनाया जाता है। सबसे बड़ा और रंगारंग उत्‍सव त्रिशूर के वडकुमनाथन मंदिर में आयोजित किया जाता है जिसे त्रिशूरपुरम कहते हैं। यह त्‍यौहार मलयाली महीने मेडम (अप्रैल/मई) में मनाया जाता है। इसके कुछ ही समय बाद त्रिशूर में अरट्टूपुझा पूरम मनाया जाता है, इस अवसर पर लगभग 60 सजे-धजे हाँ‍थियों का जुलूस निकाला जाता है। इस वर्ष अरट्टूपुझा पूरम 11 अप्रैल को मनाया जा रहा है।
दक्षिण भारत में त्रिशूर शहर से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित अरट्टूपुझा एक गांव है जो केरल के त्रिशूर जिले में पुट्टुकाड के पास पड़ता है। अरट्टूपुझा को केरल की सांस्‍कृतिक राजधानी माना जाता है। यह करूवनूर नदी के तट पर स्थित है। अरट्टूपुझा मंदिर इस वार्षिक त्‍यौहार का केंद्रबिंदु होता है। इस मौके पर पारम्‍परिक वाद्यवृंदों और चमकते-दमकते हौदों से सजे हुए हाथियों की शोभायात्रा निकाली जाती है।
     कई वर्ष पूर्व कोच्चि रियासत के धुरंधर शासक सक्‍थन थाम्‍पूरन के शासनकाल में त्रिशूर पूरम की शुरूआत हुई थी। तब से यह राज्‍य का शानदार त्‍यौहार बन गया है। कहा जाता है कि इस शक्तिशाली शासक ने दुर्घटनावश एक हाथी का सिर कलम कर दिया था और इसी का प्रायश्चित करने के लिए उसने शानदार पूरम त्‍यौहार मनाने की शुरूआत की। दुर्घटनावश मारे गए हाथी को स्‍थानीय लोग वेलीचपाडु कहते थे, जिसका मतलब एक ऐसा जीव जो स्‍थानीय देवताओं के प्रवक्‍ता के रूप में काम करता है।
वाद्यवृदों की लय  
     पंचवाद्यम वाद्यवृंदों की एक लय है जिसमें लगभग 100 कलाकार पाँच विभिन्‍न वाद्यवृंद बजाते हैं। यह पूरम उत्‍सव का प्रमुख परिचायक होता है। पंचवाद्यम का शाब्दिक अर्थ है पाँच वाद्यवृंदों की सामूहिक ध्‍वनि। यह मुख्‍य रूप से मंदिर कलात्‍मक क्रिया है जिसका विकास केरल में हुआ है। पाँच वाद्यवृंदों में से तिमिला, मद्दलम, इलातलम और इडक्‍का थाप देकर बजाने वाले यंत्र हैं जबकि पाँचवाँ वाद्यवृंद ‘कोंबू’, फूंककर बजाया जाता है।
     चेंडा मेलम की तरह पंचवाद्यम भी पिरामिड जैसा एक लयवद्ध ध्‍वनि समूह है जिसकी आवाज लगातार बढ़ती जाती है। इसकी थाप बीच-बीच में आनुपातिक रूप से घटती भी है। लेकिन चेंडा मेलम के विपरीत पंचवाद्यम में अलग-अलग वाद्यों का उपयोग किया जाता है (हालांकि इलातलम और कोंबू का प्रयोग दोनों ही विधा में किया जाता है)। ये वाद्य किसी धार्मिक अनुष्‍ठान से जुड़े नहीं हैं और सबसे महत्‍वपूर्ण बात यह है कि इसमें कलाकार अपनी रूचि के अनुसार थाप देकर तिमिला मद्दलम और इडक्‍का की ध्‍वनियों में बदलाव कर सकता है।
     पंचवाद्यम में सात प्रकार के त्रिपुड प्रयुक्‍त होते हैं। ये ताल विभिन्‍न प्रकार के होते हैं। चेम्पट तालम आठ थापों वाले होते हैं, सिर्फ आखिर में इसका इस्‍तेमाल नहीं होता। इस लय में 896 थाप होते हैं जिनमें से प्रथम चरण में 448 और दूसरे चरण में 224 का इस्‍तेमाल किया जाता है। चौथे चरण में 112 थाप और पांचवें चरण में 56 थापों का प्रयोग होता है। इसके बाद पंचवाद्यम में और कई चरण आते हैं और इस लय की ध्‍वनि 28, 14, 7 और इसी तरह से घटती जाती है।
     पंचवाद्यम मूल रूप से एक सामंती कला है या नहीं अथवा इसकी लय मंदिर की परम्‍पराओं के अनुसार विकसित हुई और इसमें कितना समय लगा, यह विद्वानों की बहस का विषय है। कुछ भी हो, लिखित इतिहास से पता चलता है कि जिस रूप में आज पंचवाद्यम मौजूद है इसका अस्तित्‍व 1930 से है। प्रारंभिक रूप से पंचवाद्यम मद्दलम कलाकारों के दिमाग की उपज थी, इनके नाम हैं- वेंकिचन स्‍वामी (तिरूविल्‍वमल वेंकटेश्‍वर अय्यर) और उनके शिष्‍य माधव वारियर। उन्‍होंने अतिंम तिमिल वाद्य विद्वान अन्नमानादा अच्युत मरार और चेंगमानाद सेखर कुरुप के सहयोग से इसको विकसित किया। कहा जाता है कि इन नाद विद्वानों ने पंचवाद्यम को पाँच ध्‍वनियों का इस्‍तेमाल करते हुए अन्‍य वाद्यवृदों की ध्‍वनि को इसमें बुद्धिमतापूर्ण ढंग से मिलाकर विकसित किया। यह लय लगभग दो घंटे चलती है और इसमें अनेक ऐसी ध्‍वनियां शामिल हैं जो एक-दूसरे की पूरक होती हैं।
देखने योग्‍य सौंदर्य
    केरल के मंदिरों में गूंजन वाले पंचवाद्यम से सुखद अनुभूति होती है। कला के इस रूप में कलाकार एक-दूसरे के सामने दो अर्द्धचंद्राकार पंक्तियों में खड़े होते हैं। हालांकि, चेंड मेलम जैसे अन्‍य शास्‍त्रीय संगीत स्‍वरूपों के विपरीत, पंचवाद्यम स्‍पष्‍ट रूप से शुरूआत में ही तीव्र गति पर आ जाता है और इसीलिये शुरू से ही यह देखने में अच्‍छा लगता है, भले ही इसमें तीन लम्‍बी शंख ध्‍वनियां शामिल की गई हैं।
     पंचवाद्यम का संचालन एक तिमिला कलाकार करता है और उसमें अनेक वाद्यवृंद कलाकार शामिल होते हैं। उनके पीछे इलातलम बजाने वाले पंक्तिबद्ध खड़े होते हैं। उनके सामने कतार बनाकर मद्दलम बजाने वाले होते हैं। कोंबू बजाने वाले उनके भी पीछे होते हैं। इडुक वादकों की कतार आमतौर पर तिमिला और मद्दलम वादकों की पंक्ति के पीछे होती है।
     मद्दलम और तिमिला पीटकर बजाने वाले संगीत वाद्य हैं। मद्दलम दोनों हाथों से बजाया जाता है जब‍कि तिमिला बजाने में काफी मुश्किल होती है और वह दोनों हाथों और हथेलियों के मात्र एक तरफ से बजाया जाता है। बुनियादी तौर पर इलातलम ढाल की तरह होते हैं जिन्‍हें समय और गति बदलने के समय सूचक रूप में बजाते हैं।
     कौम्‍बू फूंक कर बजाया जाने वाला वाद्यवृंद है लेकिन पंचवाद्यम में कौबू का भी काम पड़ता है और यह मद्दलम और तिमिला कलाकारों की संगत में बजाया जाता है।          (पसूका)
*सहायक निदेशक, पत्र सूचना कार्यालय, मदुरई

वि.कासोटिया/एएम/आरएसएस/एमके/एनएस/- 83

सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई

सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई और मुझ को एक कश्ती बादबानी दे गया -जावेद अख्तर 

Wednesday, May 14, 2014

Duniya Vaalo Takte Raho-


Courtesy:AMPS0521//YouTube
04-01-2012 को अपलोड किया गया
1 of the 5018 songs by PR Sarkar. This is a hindi song, Prabhat Samgiita, a category of music, in which the lord tells all the hearty people of the world that he has given to them, what they have been longing for for ages. TYPES OF DEVOTEES; Spiritual discourse Spirituality "Spiritual (music)" Yoga Meditation Guru India MantraAnandaMurti Krsna PR Sarkar Shiva Baba bubu Neohumanism spirituality Microvita economics Prout kaoshiki Kiirtana Tandava nam Kevalam prabhat samgiita Ananda Nagar Types of devotees AMURT Marga; Shrii Anandamurtiji talks about different types Prabhat sangeet Aye Ho Tum. DEVOTIONAL MUSIC; SPIRITUAL MUSIC; parvati, kaoshikii; radha.